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________________ दूसरे के साथ मुझे क्यों जोड़ रहे हैं ? सुना जाता है कि आपके पाँच ही बाण हैं तो फिर मेरे ऊपर हज़ारों बाण क्यों चला रहे हैं ? यदि आप मेरे ऊपर प्रहार करते ही हैं तो इस तरह प्रहार कीजिए कि मैं शीघ्र यमराज के भवन चली जाऊँ । आप तो इस प्रकार प्रहार कर रहे हैं कि मैं न तो जीती हूँ, न मरती ही हूँ। अब मैं आपके शरण में आ गई हूँ, यदि आप मेरे ऊपर प्रसन्न हैं तो आप मुझे ऐसा वरदान दीजिए कि अन्य जन्म में मुझे फिर ऐसी विडम्बना नहीं हो, जिस प्रियजन की आशा में मैंने इस जन्म को बिताया । जन्मांतर में उसी को मेरा भर्ता बनावें, हे सुप्रतिष्ठ ? यह कहकर अश्रुजल के प्रवाह से स्तनों को भिंगोती हुई कनकमाला ने अनेक रत्नों से विरचित फैलती हुई किरणोंवाले घर के अंदर भाग के तोरण में अपने उत्तरीय वस्त्र से उसने पाश की योजना कर के फिर कहा, भगवन ? अब मैं आपके सामने मरती हूँ, कोई ऐसा नहीं कहे कि कनकमाला ने अनुचित किया, क्यों कि जिसकी आशा में मैंने इतना समय बिताया वह मिल न सका । तो फिर मैं अपनी प्रतिज्ञा क्यों तोडं, दूसरी बात यह है कि मुझ अभागिन के पाप से देवताओं का वचन भी सत्य नहीं निकला, अथवा नरवाहन भक्त ने पिशाच रूप धारण कर ऐसा कहा होगा । भगवन् ? आपकी कृपा से मेरी मृत्यु बिना बाधा से सम्पन्न हो । मुझे तो अभी भी शंका है कि मेरा मरण होगा या नहीं ? क्यों कि प्रिय-विरह दुःख को शांत करनेवाली मृत्यु भी बड़े पुण्य से ही मिलती है, यदि मुझे मृत्यु अभी प्राप्त हो जाए मैं अपने को अत्यंत कृतार्थ मानूं, यह कहकर वह नीचे की ओर मुंह कर के गिर पड़ी, जल्दी से वहाँ जाकर मैंने उसके गले का पाश काटा और उसको अपनी गोद में लेकर मैंने धीरे से कहा,
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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