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________________ छठा-परिच्छेद इतने में सूर्य समस्त आकाशमंडल में परिभ्रमण कर रास्ते की थकावट को दूर करने के लिए मानो स्नान करने के लिए पश्चिम समुद्र को प्राप्त हुआ। चित्रगति ने कहा कि हम अपने कार्य को सिद्ध करने के लिए अपरिचित रूप में ही मदनगृह में प्रवेश करें, मैंने भी स्वीकार लिया, उसके बाद उठकर उद्यान में कुछ फूलों को चुनकर मदनगृह में प्रवेश कर उनकी पूजा करके कहा कि भगवान ! आपकी कृपा से हमारा कार्य सिद्ध हो, यह कहकर हम दोनों मदन के पीछे छिप गए, एक पहर से कुछ अधिक रात बीतने पर मांगलिक उपचार किए सफेद आभूषणों से भूषित शरीरवाली सुगंधित फूलों की माला धारण किए सखियों के साथ उत्तम पालकी पर चढ़ी हई कनकमाला मदनमंदिर के द्वार पर पहुँच गई, अनेक प्रकार के बाजे बज रहे थे, पालकी से उतरकर हाथ में पूजा के सामान को लेकर अपने परिजन को द्वार पर रखकर अकेली मंदिर में प्रवेश करके द्वार बंद करके मदन पूजा करने के बाद उनके चरणों पर गिरकर दीर्घ निःश्वास लेकर, आँसू बहाती हुई कनकमाला धीरे-धीरे उलाहना देती हुई इस प्रकार बोली कि भगवान् ! आप तो सुरासुरों को जीतनेवाले हैं, फिर स्त्रियों के ऊपर आप क्यों प्रहार करते हैं ? आपने यदि उसके प्रति इतना मेरा अनुराग किया तो फिर उसको छोड़कर
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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