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________________ ( ७० ) 1 नगर सुरनंदन आ गया । चित्रगति भी उसके पीछे-पीछे चलकर सुरनंदन नगर के बाहर उद्यान में ठहर गया । वहाँ ऋषभ जिनेंद्र के मनोहर मंदिर में यात्रा समय में मिले हुए सुंदर वेशवाले जनसमूह को देखकर मंदिर में प्रवेश कर जिनेंद्र की भक्ति से पूजा करके विद्याधरों के बीच बैठ गया । एक क्षण के बाद ज्वलन प्रभ से भेजा गया दमघोष नाम का एक मनुष्य उस जिन-मंदिर में आया, चित्रगति को देखकर प्रणाम कर उसे बाहर ले जाकर उसने कहा कि आप तो बहन को छुड़ाने के लिए आकाश में उड़ गए, फिर भी ज्वलनप्रभ अपनी साधना में निश्चल रहे मंत्र जपते हुए उन्हें निश्चल देखकर रोहिणी विद्या प्रत्यक्ष हो गई और उसने कहा कि आपकी असाधारण धीरता से मैं प्रसन्न होकर आपकी वशीभूत हो गई, अतः आप मुझे अपने कार्य के लिए आदेश दीजिए । ज्वलनप्रभ ने कहा कि मेरी भार्या को हरकर कनकप्रभ ले गया हैं, उसको शीघ्र मेरे पास लाओ । इस पर विद्या ने कहा कि प्रज्ञप्ति विद्या से कनकप्रभ को आपकी रोहिणी विद्या साधना की बात मालूम पड़ गई, अत: आपके चित्त को चंचल करने के लिए वह आपके पास आया था, और उसने यह सब कुछ माया से किया है, आपकी भार्या तो अपने भवन में शांति से विराजती है, मोहिनी विद्या से उसने चित्रगति को मोहित कर दिया है, वह अभी सुरनंदन नगर में जिन मंदिर में बैठा है | अतः आप अपने चित्त में थोड़ी भी अशांति मत रक्खें, यह कहकर विद्या अदृष्ट हो गई, तब ज्वलनप्रभ ने मुझे आपके पास भेजा, उसकी बात सुनते ही चित्रगति का मोह टूट गया और वह स्वस्थ होकर दमघोष के साथ अपने घर को चला । इतने में जिनेंद्र का स्नपन समाप्त होने पर लोग अनेक प्रकार के वाहन पर चढ़कर नगर में
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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