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________________ में ही करनी पड़ेगी। एक के साधन करते समय दूसरे को उत्तरसाधक रूप में रहना पड़ेगा। बड़ी से बड़ी विभीषिकाओं में मन को स्थिर रखना होगा । सातवाँ महीना पूरा होने पर विद्या दर्शन देगी। राजा के इस प्रकार कहने पर उनके चरणकमल को प्रणाम कर दोनों ने पूर्व सेवा प्रारम्भ की, छ:, महीने पर बीतने सातवें महीने में जंगल में जाकर ज्वलनप्रभ ने पहले जप-होमादि के द्वारा उत्तर सेवा शुरू की और वसुनंदक खड्ग लेकर चित्रगति उसका रक्षक बना । दूसरे दिन भय से अत्यंत काँपती हुई दौड़कर आई हुई चित्र लेखा को देखकर चित्रगति ने उससे पूछा, भद्रे? इस घोर जंगल में तुम अकेली कैसे आ गई ? किसके भय से इस प्रकार काँप रही हो ? उसने कहा कि दास-दासियों के साथ नगर से निकलकर उद्यान में आकर कामदेव की पूजा कर के जब मैं अपने घर आ रही थी इतने में किसी ने मुझे विमोहित कर दिया । परिजन को छोड़कर मैं भागती हुई इस जंगल में आई और मैंने कनकप्रभ को देखा, उसने मुझ से कहा कि “ तुम मेरी इच्छा करो।" मैंने बड़े कठोर शब्दों से उसकी निंदा की, उसने तलवार दिखाकर मुझ से कहा कि अगर तुम मुझे नहीं चाहोगी तो तुम्हारा सिर काट लूंगा। उसके भय से वहाँ से भागकर मैं आपके पास आई हूँ, आप मुझे उस पापी से बचाइए, वह इस प्रकार बोल ही रही थी कि इतने में एकाएक आकर उसका हाथ पकड़कर कनकप्रभ आकाश में उड़ गया। बचाओ, बचाओ, यह कहकर विलाप करती हुई उसके द्वारा हरकर ले जाई जाती हुई बहन को देखकर चित्रगति ने भी तेज तलवार लेकर " ठहर-ठहर नीच ? अब तू कहाँ जाएगा? अपना पुरुषार्थ दिखा" यह कहते हुए उसका पीछा किया। विमोहिनी विद्या से चित्रगति को विमोहित कर कनकप्रभ अपने
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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