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________________ (७१) प्रवेश करने लगे । कुछ लोग पालकी पर, कुछ रथ पर, कुछ हाथीघोड़े, खच्चर पर चढ़कर जा रहे थे । इतने में कनकप्रभ का एक मदमत्त हाथी बिगड़ गया और नगर से निकलकर घर के द्वारों को दीवालों को तोड़ने लगा, लोगों को मारने लगा, रथों को फेंकने लगा । यमराज के समान भयंकर मुखवाले उस हाथी को देखकर लोग अपनी जान बचाने के लिए चारों तरफ भागने लगे । कौतुकवश चित्रगति भी आकाश में ठहरकर उस हाथी की विनाशकारी लीला को देखने लगा । उसने देखा कि एक युवती रथ पर जा रही थी । घोड़े हाथी से डरकर उन्मार्ग से चलने लगे, रथ टूट गया, और वह युवती नीचे गिर पड़ी, उस बिचारी की आँखें नीलकमल के समान विशाल और चंचल थीं, उसके कुंडल टूट गए थे । बाल बिखर गए थे, उसके हार कांची केयूरवलय ग्रैवेयक नूपुर रत्नमाला आदि अभी आभूषण अस्तव्यस्त हो गए थे, भूमि पर गिरी हुई उसको देखकर उसको मारने के लिए हाथी उसकी ओर चला, सब लोग हाहाकार करने लगे, सुंदर अंगों तथा उपांगोंवाली चंद्रमुखी कृशोदरी विशाल नितम्बवाली वह बिचारी हाथी को अपनी ओर आते-आते देखकर भी भागने मैं सर्वथा असमर्थ थी और चंचल आँखों से किसी बचानेवाले की प्रतीक्षा कर रही थी । चित्रति आकाश में सोचने लगा कि हाय ? काम निधान इस स्त्रीरत्न का विनाश अवश्यंभावी है, यह सोचकर आकाशमार्ग़ से नीचे उतरकर, उस युवती को गोद में लेकर, किसी निरुपद्रव स्थान में रखकर वस्त्र के अंचल से पवन का उपचार कर उसे शांत करने के लिए आश्वासन देने लगा, तब लज्जा और भय से संकुचित आँखों से चित्रगति को देखकर वह युवती प्रसन्नमुखी हो गई । चित्रगति भी सौंदर्य से आकृष्ट
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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