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________________ (४८) चूतलता की बात से कल सबेरे उसका दर्शन होगा । यदि भाग्य साथ देगा तो, विरहाग्नि से संतप्त मेरे हृदय के लिए उसका दर्शन ही औषध है, इस प्रकार अनेक विकल्पों से मुझे नींद नहीं आई और चार पहर की रात हज़ार पहर की बन गई । मैं मानता हूँ, केवल उसके दर्शन की आशा से ही अत्यंत दुःख में भी मेरा हृदय विदीर्ण नहीं हुआ है । अपनी शीतल किरणों से भी मेरे संताप को दूर नहीं कर सके, इस लज्जा से मानो चंद्र अस्ताचल को प्राप्त हो गया । रात बीतने पर पूर्व दिशा एकदम लाल हो गई । कमलवन को प्रतिबोधित करने के लिए चक्रवाक दंपती को संयुक्त करने के लिए सूर्य का उदय हुआ । इसके बाद उठकर मैं प्रभात कृत्य करने लगा। प्रिया दर्शन की आशा से, हे सुप्रतिष्ठ ? उस समय मेरा मन अत्यंत प्रसन्न था । o O
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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