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________________ चतुर्थ - परिच्छेद इसके बाद भानुवेग ने आकर हँसते हुए मुझ से कहा कि आप चूतलता के वचनानुसार उद्यान जाइए। बड़ी प्रसन्नता से हाँ कहकर में जाने की तैयारी कर ही रहा था कि इतने में मांगलिक तूर की आवाज़ सुनाई दी । मैंने भानुवेग से पूछा कि तुरही कहाँ बज रही है ? उसने कहा कि मैं ठीक से तो नहीं बता सकता हूँ किंतु मुझे लगता है कि अमितगति के घर से आवाज़ आ रही है । मैंने सोचा कि प्रियासमागम नज़दीक होने पर भी संताप क्यों बढ़ रहा है ? और बाँया नेत्र भी क्यों फड़क रहा है ? अतः कुछ कारण अवश्य होना चाहिए, तब मैंने चूतलता को बुलाकर उससे जल्दी पता लगाने के लिए कहा, वह गई और एक क्षण के बाद ही आ गई, उसका मुखकमल मलिन था, उसने कहा कि अमितगति के घर पर इतनी भीड़ थी कि मैं अंदर जा नहीं की, फिर पूछने पर बंधुदत्ता ने कहा कि गंगावर्त के राजा श्री गंधवाहन के पुत्र नभोवाहन को कनकमाला दी गई है उसीका यह वरण महोत्सव है । सुनते ही मानो मुद्गर के आघात से मूच्छित होकर में एकाएक पृथ्वी पर गिर पड़ा । कर्पूरमिश्रितजल तथा पंखे के शीतल पवन के उपचार से होश में आकर मैं सोचने लगा कि दृष्ट विधाता की क्या लीला है ? उसने मेरे प्रियासंगम के सारे मनोरथों को चूरचूर कर दिया । मनुष्य क्या सोचता है और - ४ -
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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