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________________ आशय का पत्र लिखा कि भ्रमर का अनराग केवल कमल में ही हैं अन्य फूलों में नहीं, दूसरे पत्ते में तांबूलसहित उस पत्र को रखकर मैंने चूतलता के हाथ में दिया । वे दोनों वहाँ से गईं। कुछ ही देर के बाद चूतलता वहाँ से आई और उसने कहा कि जब मैं उसके घर पर गई तो मत्ता मच्छिता पिशाचग्रस्त कनकमाला अत्यंत विषस अवस्था में पड़ी थी। जब उसकी सखियों ने कहा कि चित्रवेग की दूती आई है तो आपके नामाक्षर को सुनकर उसे कुछ चैतन्य आया । वह तुरंत उठकर बैठी। मुझे देखकर कुछ लज्जित जैसी हो गई, मैंने उसे ताम्बूल दिया। उसने सहर्ष लिया, फिर उसने पूछा कि यह तांबूल किसने भेजा है ? मैंने कहा, संदरि ? आपके मनोहर प्रियतम ने भेजा है, उसने कहा, भद्रे ? मैं तो कन्या हूँ तो फिर मेरा प्रियतम कैसे ? मैंने कहा कि जो आपका प्रियतम होगा। तब वह कुछ अस्पष्ट बोलने लगी कि मुझ अभागिन के इतने बड़े पुण्य कहाँ से ? जिसका दर्शन भी दुर्लभ है वह भर्ता कैसे होगा? इतना बोलने के बाद उसकी आँखें आँसू से भर आईं और निःश्वास लेकर वह फिर मूर्छित हो गई, तब उसकी सखियों ने मुझ से कहा कि उनके प्रेम में इसकी जो अवस्था हो गई है, जैसा तुमने देखा है उनसे जाकर कहो और फिर उन्होंने आपसे कहने के लिए कहा कि यदि यह किसी तरह आज रात जी जाती है तो कल सबेरे यह उद्यान में आएगी वहाँ वे अपना दर्शन दें, यह उनके दर्शन से ही जीवित रह सकती है अन्यथा नहीं, उनके कथनानुसार मैं आपके पास आई हूँ, चूतलता की बात सुनकर उसके विरह में मेरा संताप पहले से द्विगुणा बढ़ गया, मैंने मन में सोचा कि यदि वह मेरे विरह में संतप्त होकर मरेगी तो इसी निमित्त से मेरा भी मरण होगा, अथवा यदि उसे मेरे
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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