SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४५) उसका मुखकमल कुछ सफेद जैसा हो गया था। वह बिछौने पर लेटी थी। लंबे निःश्वास से उसका शरीर सूख रहा था । किसीकिसी तरह प्राण रक्षा कर रही थी। हार चंदनपंक कमलनाल कमलपत्र और अधिक उसके शरीर को संतप्त कर रहे थे, सुंदर शय्या भी अंगार की तरह उसे जला रही थी। पूछने पर कुछ उत्तर नहीं दे रही थी। श्रेष्ठ योगिनी की तरह ध्यान में लीन थी। केवल आपके नाममंत्र से उसे कुछ आश्वासन मिल जाता था । प्रिय विरह से पीडित मरणासन्न उसे देखकर उसके दुःख से दुःखी होकर मैं आपके पास आई हूँ, इसलिए सुंदर ? जब तक उस बिचारी की साँस समाप्त नहीं होती उसके पहले आप उसे आश्वासन दें, जब तक उसके प्राण निकल नहीं जाते तब तक आप कुछ उपाय करें। मर जाने पर पीछे आप क्या कर सकेंगे? उसके वचन सुनकर हे राजपुत्र ? मैंने उससे कहा कि कनकमाला कौन है ? मैं तो जानता भी नहीं हूँ, मैं तो मेहमान हूँ, सर्वथा अपरिचित हूँ अतः इस विषय में भानुवेग से पूछो, भानुवेग ने कहा,मैं भी कुछ नहीं जानता हूँ तब वह कुछ रुष्ट होकर बोली, भद्र ? आप कितने निर्दय हैं, दृष्टिबाण से उसके हृदय को बींधकर मरणासन्न बनाकर आप अपने को उस विषय से अज्ञात बतलाते हैं। जो मनुष्य जहाँ रहता है उस स्थान को बड़े आदर से बचाता है, आप उसके मन में बसते हैं और उसको ही जलाते हैं, उसके हृदय को चुराकर चोर की तरह अपलाप क्यों करते हैं ? आप इससे छूट नहीं सकते, कुछ उपाय करें । तब मैंने उससे कहा कि आप ही उपाय बतलाएँ, मैं कुछ नहीं जानता हूँ। उसने कहा कि उसके विश्वास के लिए अपना चित्र या पत्र भेजिए, जिससे वह तत्काल प्राण रक्षा करें। राजपुत्र ? तब मैंने कमलिनी पत्र इस
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy