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________________ (२५) जलधारा से पीड़ित उस बूढ़े बैल को देखा जो ईर्या समिति में रहे मुनि की तरह पृथ्वी को देखता हुआ धीरे-धीरे जा रहा है । सेवाल के समान हरी भूमि पर जगह-जगह फिसलते हुए तथा लकड़ी के सहारे इधर-उधर भीख मांगते हुए उस गरीब रंक को तो देखो, राजा इस प्रकार रानी से कह रहा है, इतने में वसुदत्त नामक कंचुकी नमस्कार करने के बाद इस प्रकार कहने लगा। स्वामिन् ? चंपानगरी के श्री कीर्तिवर्मा राजा के पास भेजा गया दामोदर नाम का दूत आया है, आपके दर्शन के लिए द्वार पर खड़ा है, अब आपकी जैसी आज्ञा, यह सुनकर राजा दृष्टि से ही रानी से बिदा लेकर उठकर सभा-मंडप में आया । इतने में एकाएक बिजली का चमत्कार हुआ। साथ ही भयंकर चर्ड-चर्ड शब्द भी हुआ, नर-नारी वर्ग उस शब्द को सुनकर भयभीत हो उठा । इसके बाद रानी के घर में भयंकर हाहाकार युक्त शब्द को सुनकर राजा फिर रानी के भवन की ओर लौट आया। धर्धर शब्द से रोती हुई रानी की दासी ने कहा, राजन ? अनर्थ ? अनर्थ ? रानी बिजली से जल गई । ज़मीन पर पड़ी हुई प्राण रहित रानी के शरीर को देखकर हाहाकार करता हुआ राजा भी मूर्छित होकर पृथ्वी पर गिर गया। राजा की इस स्थिति से परिजन और अधिक रोने लगे। पास के लोगों ने शीतल पवन आदि का उपचार किया, मूर्छा दूर होने पर राजा इस प्रकार विलाप करने लगे कि हा प्रिये ! स्वामिनि, जीवनदायिनि ? विशाल नेत्रोंवाली ? मेरे हृदय में निवास करनेवाली ! तुम मुझे छोड़कर कहाँ चली गई ? तुम्हारे इतने सुकोमल शरीर पर निर्दय विधाता ने कैसे बिजली गिरा दी ? चंदन-कुंकुम आदि से लेप करने योग्य तुम्हारे शरीर पर मेरे पाप से विधाता ने बिजली गिरा दी।
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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