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________________ . (२४) क्रोधपूर्ण दृष्टि से देखता है । मेरा आगमन हो गया है फिर भी तुम अपनी प्रियतमा को छोड़कर क्यों चले ? इस प्रकार गरजते हुए कुपित बादल पथिकों के हृदय को आंदोलित कर रहे हैं । धवलबला का रूप, दाढ़ोवाला बिजली रूप-चंचल जीभवाला कृष्ण शरीरवाला वर्षाकाल रूप पिशाच पथिकों का पीछा कर रहा है, प्रिये ? देखो, इंद्रधनुष से निकली धारा रूप बाणों से वियोगियों के हृदय को बींधता हुआ यह वर्षाकाल केवल पाँच बाणवाले कामदेव का मानो उपहास कर रहा है, इसी बीच रानी प्रसन्न होकर राजा से कहती है कि हे स्वामिन् ? यह वर्षाऋतु सभी ऋतुओं में श्रेष्ठ है क्यों कि केवल विरहिणी स्त्रियों को छोड़कर कामी । पामर, बछड़े, वृक्षलता आदि सब जीवों को सुख पहुँचाती है, रानी की बात सुनकर थोड़ा मुस्कुराकर राजा कहता है कि देवि ? यह बिलकुल सत्य है कि सुखी लोग जगत को सुखी देखते हैं " तुम तो स्वयं सुखी हो अतः संसार को सुखी मान रही हो, देवि ? पुण्यवानों के लिए सब ऋतुएँ सुख का कारण होती हैं और पुण्यहीनों के लिए वर्षा ऋतु भी दुःख का कारण है, सुंदरी ? देखो-देखो। इस अर्द्ध आच्छादित जीर्ण-शीर्ण झोंपड़ी में वर्षा की धारा से पीडित बिचारे गरीब बालक रो रहे हैं, बार-बार पत्नी के वचन से प्रेरित बिचारा गरीब वर्षा की धारा से पीटा जा रहा है, उसके रोंगटे खड़े हो गए हैं, ठंढी हवा से शरीर सिकुड़ रहा है, फिर भी वह दरिद्र पुरुष अपनी कुटिया की मरम्मत कर ही रहा है, भारी वर्षा की धाराओं से पीडित उस गधे को तो देखो। जिसके दोनों कान नीचे झुक गए हैं और टूटे मंदिर के कोने में खड़ा है, प्रिये ! उस सूने घर में छोटे से चूल्हों में ठंड से ठिठुरती हुई और खर-खर खड्डा खोदती हुई उस कुतिया को देखो,
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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