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________________ (२३) हर्ष के कारण सामान्य जनता जिस समय अत्यंत प्रसन्न थी। धान से लहलहाती खेतोंवाली, कीचड़ से दुःसंचार मार्गवाली वर्षा ऋतु आई, इस प्रकार नवीन वर्षा ऋतु प्राप्त होने पर एक समय राजा सुग्रीव भोजन के बाद चंदन लिप्त देहवाला कोमल बारीक और निर्मल वस्त्र पहनकर पनवट्टी हाथ में लिए रानी के महल में प्रविष्ट हुआ । सात मंज़िलवाले प्रासाद के ऊपर की मंजिल पर राजा आरूढ़ हुआ, रानी के द्वारा विनय दिखलाने के बाद बहुमूल्य आसन पर बैठा। कुछ देर तक हास्य-विनोद करने के बाद सफेद चादर से आच्छादित शय्या पर सो गया । सजल बादल के गर्जन से राजा की निद्रा उड़ गई और राजा उठकर गवाक्ष में रक्खे हुए तकिए के सहारे बैठ गया । राजा के आसन के एक भाग में रानी भी आकर बैठ गई। हर्ष से रोमांचित होकर राजा ने कहा, प्रिये ? मेरे संगम से उल्लसित मनोहर पयोधरवाली तुम्हारी तरह बादल संगम से उत्तर दिशा भी उल्लसित मनोहर पयोधरवाली होकर शोभती है। प्रिये ? बादलों के बीच चमकती हुई बिजली तुम्हारे नेत्रों की चपलता और तुम्हारे केशों का अनुकरण कर रही है, प्रिये ? इन इंद्रगोपों के चारों तरफ घूमने से मैं मानता हूँ कि वर्षारूपी लक्ष्मी चूर-चूर होकर पृथिवी पर बिखर गई हैं, वर्षाकाल रूपी राजा के नव संगम होने से भूमिरूपी स्त्री को हरे-हरे अंकुर के बहाने रोमांचित हो आया है। सूर्य ने अपनी कठोर किरणों से इस पृथिवी को संतप्त कर दिया है, इसी से क्रोधित होकर बादलों ने मानो सूर्य के किरण विस्तार को रोक दिया है, “ मेरा आगमन होने पर भी विरहिणी स्त्रियों के हृदय टूक-टूक क्यों नहीं हो गए" यह सोचकर वर्षाकाल मानो बिजली के प्रकाश के बहाने
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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