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________________ (१९) उन भीलों के आ पहुँचने पर सारा सार्थ आकुल व्याकुल हो गया, क्यों कि एक तो भीलों की संख्या अधिक थी, दूसरी बात यह थी कि सार्थ के लोग अपने-अपने कार्य में लगे थे, शरण रहित समस्त सार्थ के त्रस्त हो जाने पर कुछ साहसी लोग अभिमान से इस प्रकार बोलने लगे कि रे पिशाच ? अब हमारी दृष्टि के सामने आकर कहाँ जाते हो ? अगर तुम्हारे पास कुछ पुरुषार्थ हो तो दिखाओ, और उस सार्थ में जो कुछ डरपोक हृदयवाले थे वे तो - अपनी अंगुलियों को दाँतों के नीचे दबाकर हाय-हाय ? बचाओ बचाओ " इस प्रकार करुण शब्द बोलने लगे, कुछ लोग लूट जाते कुछ पीटे जाते थे कुछ कायर भागने के लिए मौका ढूंढ़ रहे थे, कुछ कायर लोग तो मौका पाकर धीरे-धीरे खिसकते हुए जंगल में छिप जाते थे, कुछ लोग कांप रहे थे, कुछ लोगों के कच्छ का बंधन ढीला पड़ गया था, कुछ लोग पुरुषार्थ छोड़कर दीनों की चेष्टा स्वीकार रहे थे, कुछ लोग तो लज्जा छोड़कर किसी-किसी तरह छुटकारे की माँग करते हुए उन पापियों की खुशामद करते थे, कुछ लोग जमीन पर गिरकर अपने को मृत बतलाते थे, कुछ लोग अगल-बगल देखकर अपनी धनराशि को मिट्टी के अंदर छिपाते थे, जो लोग लकड़ी आदि लाने के लिए बाहर गए थे वे भी कलकल शब्द सुनकर भय से और दूर भाग गए । उस समय साथ में चारों ओर "पकड़ो, मारो, बांधो, मुंह में धूल भर दो" इस प्रकार के शब्द सुनने में आ रहे थे, इतने में भीलों द्वारा इधरउधर सार्थ के लोगों को लूटे जाते हुए देखकर अपने कुछ पुरुषों के साथ धनदेव अपनी आकृति से उन भीलों के चित्त को क्षुब्ध करता हुआ, हाथ में वसुनंदक नामक तलवार उठाकर इस प्रकार कहने लगा कि अरे ? पापियों ? यदि तुम्हें अभिमान की खुजली आ
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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