SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीय-परिच्छेद इसके बाद दूसरे दिन क्रमशः उस जंगल के अधिकांश भाग को पार कर लेने पर एक जलाशय को प्राप्त कर सार्थ ने पडाव डाल दिया । बैलों के ऊपर से भार-उतारकर जब सार्थ के लोग पानी, लकड़ी आदि के लिए इधर-उधर घूमने लगे, सब बैलों तथा भैंसों को चरने के लिए दिशाओं में छोड़ देने पर लोगों के द्वारा तत्कालोचित कार्य शुरू कर लेने पर गुप्तचर के द्वारा सार्थ को भोजनकार्य में व्यस्त जानकर एकाएक उस सार्थ पर भीलों ने आक्रमण कर दिया, वे भील नए मूंग के समान काले वस्त्र घुटने तक पहने हुए भीषण शरीरवाले स्याही की राशि के समान काले तथा कुपित यमराज के समान दुःख से देखने लायक थे। उनका शरीर कठोर तथा बीभत्स था, पलाश के पत्तों से मस्तकालंकार बनाया गया था, वे गुंजा फल के समान लाल-लाल आंखोंवाले थे, उनके केश कठोर खड़े तथा रूक्ष थे, वे कवच पहने थे, उनके पीठ-प्रदेश पर तरकस बँधा था, बाण चढ़ाकर कान तक मौर्वी धनुषकी डोरी को खींचकर डटे थे, कुछ लोगों के हाथों में तलवारें थीं, और कुछ लोग हाथ में लाठियां लिए हुए थे, गोफन घुमाने से उत्पन्न भयानक शब्दों से लोगों की जान लेनेवाले थे, वे भील अत्यंत ढीठ तथा कठोर हृदयवाले थे, दशों दिशाओं में “ मारो-मारो" बोलते थे, ऐसे वे भील एकाएक उस सार्थ पर टूट पड़े थे।
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy