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________________ (२१९) गंगावर्त में श्रीगंधवाहन नामक एक राजा थे। मयणावली उनकी भार्या थी। उस भार्या में राजा के नरवाहन, मकरकेतु और मेघनाद नामक तीन पुत्र हुए। पिता के साथ नरवाहन के प्रवजित होने पर मकरकेतु राजा हुआ। विद्या साधन करते समय आपके पिता ने वंशजाल को काटते हुए उसका सिर काट डाला, बाद में आपके पिता ने मेघनाद को राजा बना दिया । और बहुत गाँव, नगर दिए। चित्रगति विद्याधर की कन्या पद्मोदरा के साथ उसका विवाह हुआ। उसीकी कन्या यह मदनवेगा नाम की है। जलकांतपुत्र जलवेग के साथ विवाह की बात चल रही थी, क्या हुआ यह मैं नहीं जानता हूँ, उसकी बात सुनकर युवराज ने कहा, वसंत ? मैं इस कन्या के बिना जी नहीं सकता, इसलिए यदि मेरे जीवन से आपको प्रयोजन हों । मैं आपका प्रिय होऊँ तो आप मेरे पिताजी से जाकर कहें, जिससे मुझे यह शीघ्र ही प्राप्त हो जाए। वसंत ने जाकर राजा से युवराज के निश्चय को बतलाया, राजा ने मेघनाद से कन्या की याचना की, प्रसन्न होकर उसने स्वीकार कर लिया, गंगावर्त में बड़े आडम्बर के साथ मदनवेंगा के साथ युवराज का विवाह सम्पन्न हुआ। उसको लेकर अनंगकेतु अपने नगर आ गया। मदनवेगा के विवाह की बात सुनकर जलवेग अत्यंत दुःखी हुआ। उसने मदनवेगा के विरह में व्याकुल होकर अनंगकेतु को मारने का उपाय सोचा। एक दिन मदनवेग से कहा, मित्र ? आप यह नहीं जानते ? कि आप मकरकेतु राजा के पुत्र हैं, सुरसुंदरी आपकी माता है, आपके पिता ने आपके जन्मदिन ही यहाँ भेजकर आपका बड़ा अपमान किया है । आपके छोटे भाई को युवराज बनाया है, आपको तो कभी देखने की इच्छा भी नहीं करते । आप तो उस दिशा में जा भी नहीं सकते, जिधर आपके पिता रहते हैं,
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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