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________________ 16 शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास है। महाकवि कालिदास ने भी अपने ग्रन्थ में शूरसेन का उल्लेख किया है और बताया है कि यहां के निवासी पाटलिपुत्र से अधिक सुन्दर एवं सभ्य होते हैं। ब्राह्मणेत्तर साहित्य में जैन एवं बौद्ध धर्म के ग्रन्थों का महत्वपूर्ण स्थान है। जैन साहित्य में आगम ग्रन्थ, कल्पसूत्र, भगवती सूत्र, अंग विज्जा, पउमचरिय, वसुदेवहिण्डी, आवश्यकचूर्णी, आवश्यक नियुक्ति, रायपसेनिय सूत्र, समवायांग सूत्र, उत्तराध्ययन सूत्र, विविधतीर्थ कल्प विशेष उल्लेखनीय है। ___ इन महत्वपूर्ण ग्रन्थों से चौबीस तीर्थंकरों का जीवन वृत्तान्त एवं विभिन्न तीर्थों के विषय में महत्वपूर्ण ज्ञान उपलब्ध होता है। विवागसूय से ज्ञात होता है कि महावीर स्वामी का शूरसेन जनपद में विहार हुआ था। इसी क्रम में कर्म विपाक, तिलोयपण्णति, दशवैकालिक सूत्र, तत्वार्थ सूत्र, परिशिष्ट पर्वन, नन्दीचूर्णि, प्रबन्ध चिन्तामणि आदि ग्रन्थों से जैन धर्म एवं दर्शन संस्कृति की अमूल्य जानकारी मिलती है। शूरसेन जनपद में सात जैन साधुओं द्वारा धर्म के प्रचार कार्य का उल्लेख विमलसूरि कृत पउमचरिय से ज्ञात होता है। बृहत्कथाकोश, स्थानांग सूत्र, सूत्रकृतांग-टीका, त्रिषष्टिशलाकापुरुष- चरित, ज्ञातृधर्मकथा आदि ग्रन्थों का विशेष उल्लेखनीय स्थान है। इन प्रमुख ग्रन्थों से प्राचीन भारत में जैन धर्म-दर्शन एवं संस्कृति तथा कला का वृहद् ज्ञान उपलब्ध होता है। ___ वृहत्कल्पसूत्र भाष्य से ज्ञात होता है कि मथुरा राज्य के 96 गांवों के चौराहों पर ‘मंगलचैत्य' निर्मित किये गये थे और उनमें अर्हत प्रतिमाएं प्रतिष्टित की गई थीं। श्वेताम्बर परम्परा के प्रमुख ग्रन्थों में वप्पट्टिसूरि कृत चर्तुविंशतिका, शोभनमुनिकृत चतुर्विंशति स्रोत, निर्वाणकलिका प्रवचनसारोद्वार आदि महत्वपूर्ण ग्रन्थों से विशेष जानकारी मिलती है।
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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