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________________ विषय का महत्व एवं अध्ययन स्रोत व्यापारिक सम्बन्ध रखता था। शूरसेन जनपद के व्यापारी तब देश एवं विदेश की अनेक वस्तुओं का क्रय-विक्रय कर यथेष्ट धनार्जन करते थे। __ पुष्यमित्र के शासनकाल में प्रसिद्ध वैयाकरण पतंजलि हुए थे, जिन्होंने पाणिनि कृत अष्टाध्यायी पर 'महाभाष्य' की रचना की थी। उन्होंने शूरसेन जनपद के निवासियों के विषय में कहा है कि यहां के निवासी संकाश्य और पाटलिपुत्र में रहने वालों से भी अधिक सुन्दर और समृद्ध होते हैं। __ शूरसेन जनपद में जैन धर्म के क्रमबद्ध विकास को प्रस्तुत करने के लिए जो सामग्री उपलब्ध है उसे मुख्य रूप से तीन भागों में विभक्त कर सकते हैं : (1) साहित्यिक सामग्री (2) पुरातात्विक अवशेष और (3) विदेशी यात्रियों के वृत्तान्त। साहित्यिक सामग्री में मौलिक ग्रन्थों का प्रमुख स्थान है, तत्पश्चात आधुनिक ग्रन्थों का स्थान आता है। मौलिक ग्रन्थों को भी दो भागों में विभक्त कर सकते हैं : (क) ब्राह्मण ग्रन्थ, (ख) ब्राह्मणेत्तर ग्रन्थ। ब्राह्मण ग्रन्थों में पुराणों का विशेष महत्व है। प्रमुख पुराणों में शूरसेन जनपद का उल्लेख प्राप्त होता है। जैसे- हरिवंश पुराण, मत्स्य पुराण, भागवत पुराण, वराह पुराण, पद्म पुराण, स्कन्द पुराण, ब्रह्मवैवर्त एवं गरूण पुराण। इन महत्वपूर्ण पुराणों में न केवल शूरसेन जनपद के भौगोलिक एवं प्राकृतिक वर्णन मिलते हैं अपितु प्राचीन वंशावलियां, युद्ध, धर्म, दर्शन, कला एवं सामाजिक जीवन से सम्बन्धित विवरण मिलते हैं। शूरसेन जनपद के सम्बन्ध में हरिवंश तथा भागवत पुराण का विशेष धार्मिक महत्व है। परवर्ती संस्कृत साहित्य में मनुस्मृति, स्मृति ग्रन्थ, काव्य, नाटक, चम्पू, आख्यायिका आदि हैं जिनसे विशेष उल्लेखनीय जानकारी मिलती
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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