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शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास
शूरसेन जनपद में प्रसिद्ध गोवर्धन पर्वत है, जिसे 'गिरिराज' कहते हैं। यह मथुरा नगर से लगभग 13 मील पश्चिम है और दक्षिण पूर्व की दिशा में फैला है। इसकी लम्बाई करीब पांच मील है और ऊंचाई 100 फुट तक जाती है । यह पर्वत बहुत पवित्र माना जाता है और इसकी बड़ी संख्या में श्रद्धालु परिक्रमा करते हैं ।
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शूरसेन जनपद की भूमि उन भू-भागों को छोड़कर जहां जंगल, पर्वत या टीले नहीं हैं अन्य मैदानी हिस्से के समान ही है । भूमि बंजर एवं उर्वरक दोनों प्रकार की है। यहां की दो मुख्य फसलें है, खरीफ एवं रबी की । खरीफ में ज्वार, बाजरा और कपास की खेती प्रधान है ।
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मक्का, मोंठ और ज्वार भी बोया जाता है । इनके अतिरिक्त उर्द, मूंग, तिल, सन् और चावल भी पैदा किया जाता है, पर कम मात्रा में गन्ना भी कम होता है। रबी की फसल में गेहूं और चना मुख्य है । मटर, मसूर, आलू, गाजर, सरसों, अलसी आदि की भी उपज कई भागों में होती है।
यमुना के रेतीले भाग में ककड़ी, खरबूजे, काशीफल आदि उगाया जाता है और शेष भाग में झाऊ, कांस, करील, झरबेरी आदि झाड़ियां उत्पन्न होती है । झाऊ से टोकरी, डले आदि बनते हैं और कांस का उपयोगी छप्पर बनाने में किया जाता है
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शूरसेन जनपद में अनेक प्रकार के वृक्ष पाये जाते हैं, जैसे- अनार, अमरूद, अमलताश, अरनी, अशोक, आम, आंवला, इमली, कटहल, जामुन, गूलर, खजूर, नारंगी, नीम, नींबू, पपीता आदि। चीनी यात्री ह्वेनसांग जब मथुरा आया था, तब उसने इस क्षेत्र में होने वाले आमों की बहुतायत का उल्लेख किया है। उसने लिखा है- 'यहां पर आमों के पेड़ इतनी अधिकता से पाये जाते हैं कि कहीं-कहीं पर उनके जंगल हो गए। यहां दो प्रकार के आम पाये जाते हैं। एक का फल छोटा होता है, जो कच्चा होने पर हरा और पकने पर पीला हो जाता है । दूसरे का फल बड़ा होता है जो पकने पर भी हरा ही रहता है। 24