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विषय का महत्व एवं अध्ययन स्रोत
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पशु-पक्षियों के लिए भी शूरसेन जनपद बहुत प्रसिद्ध रहा है वर्षाकाल में मयूरों के नृत्य हुआ करते थे । अब भी ब्रज में मोरकुटी, मोर मन्दिर आदि नाम इस बात के स्मारक हैं कि शूरसेन में मयूर पक्षी का कितना महत्व था। अन्य पक्षी कोयल, गौरेया, अबाबील, कठफोड़वा, ठठेरा, तोता, नीलकण्ठ, कौआ आदि हैं। गाय, भैंस, भेड़, बकरी, खच्चर, घोड़ा, हाथी आदि पालतू पशु हैं।
शूरसेन जनपद में जैन धर्म के विकास का अत्यधिक महत्व है । यह विषय इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है कि यहां पर जैनधर्म का अस्तित्व प्रारम्भ से लेकर बारहवीं शताब्दी तक रहा है और आज भी विद्यमान है ।
जब मनुष्य ने पृथ्वी पर अपने जीवन का विस्तार किया, तब उसे नये भू-स्थानों तथा जलवायु परिवर्तनों के विषय में जानकारी प्राप्त हुई । भिन्न-भिन्न स्थानों की उपयोगिता एवं प्रकृति की आकर्षक छटा ने मानव को एकत्र होकर रहने के लिए प्रेरित किया ।
जब मनुष्यों ने एक ही स्थान पर निवास करना प्रारम्भ किया तब उसने देखा कि जलवायु एवं ऋतुएं परिवर्तनशील हैं। परिवर्तनशीलता ने मानव जीवन को आकर्षित किया और एक सीमा तक प्रभावित भी किया।
इस प्रकार पूजा-पद्धति और आस्था एवं विश्वास से मनुष्य की अथक यात्रा को समाप्त कर विभिन्न धर्मों के स्वरूप को धारण किया । मानव की जिज्ञासा जो प्राकृतिक रहस्य, उपहारों, श्रद्धा एवं अन्य गूढ़तम् विषयों को जानने के कारण उत्पन्न हुई थी । उससे मनुष्य शैनः शैनः अध्यात्म एवं धर्म की ओर प्रवृत्त हुआ । धर्म एवं अध्यात्म के प्रति आकर्षण के कारण विश्व भर में मानव ने भिन्न-भिन्न धर्मों एवं सम्प्रदायों की स्थापना की । मानव स्वभाव ने अपने चिन्तन के द्वारा ईश्वर को ढूंढने का प्रयास जारी रखा। कभी निराकार तो कभी साकार, लेकिन अपने भावों को व्यक्तिगत अभिव्यक्ति देना मूर्तियों के माध्यम से प्रारम्भ किया । मूर्तिपूजा का खण्डन होने के बाद भी मूर्तियों का निर्माण