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________________ विषय का महत्व एवं अध्ययन स्रोत जम्बूस्वामी के तप और निर्वाण की भूमि होने से मथुरा जैनियों के लिए प्रमुख तीर्थ स्थान रहा है। __ इस प्रकार शूरसेन जनपद जिनों की विहार भूमि, विविध, मुनियों की तपोभूमि एवं अनेक सिद्ध पुरुषों की निर्वाण भूमि होने के साथ ही साथ जैन धर्म के सुप्रसिद्ध स्तूपों, मन्दिरों और कलाकृतियों के कारण अत्यन्त प्राचीन काल से ही सिद्ध क्षेत्र तथा उत्तरापथ का प्रमुख तीर्थ स्थान माना गया है।" भारतवर्ष की सर्वोपरि पवित्र और प्राचीन नदियों में यमुना की गणना गंगा के साथ की जाती है। गंगा-यमुना के दोआब की पवित्र भूमि में ही आर्यों की पुरातन संस्कृति का गौरवशाली रूप निर्मित हुआ था। शूरसेन जनपद की यमुना एक मात्र महत्वपूर्ण नदी है। जहां तक शूरसेन जनपद की संस्कृति का सम्बन्ध है यमुना को केवल नदी कहना ही पर्याप्त नहीं है। वस्तुतः यह शूरसेन जनपद की संस्कृति की सहायक, इसकी दीर्घकालीन परम्परा की प्रेरक और यहां की धार्मिक भावना की प्रमुख आधार रही है। 'यमुना सहस्त्रनाम' में यमुना जी के एक हजार नामों से उनकी प्रशस्ति का गायन किया गया है।20 __प्राचीन साहित्य में कलिंदजा, सूर्यतनया, त्रियामा आदि अनेक नामों से यमुना का उल्लेख मिलता है। ___ भागवत तथा स्कन्द पुराणों से ज्ञात होता है कि प्राचीन वृन्दावन में यमुना गोवर्धन के निकट प्रवाहित होती थीं, जबकि इस समय वह गोवर्धन से प्रायः चौदह मील दूर हो गई है। जो लगभग इक्कीस किलोमीटर है। शूरसेन जनपद में बारह वनों के नाम का उल्लेख मिलता हैमधुबन, तालबन, कुमुदबन, बहुलाबन, कामबन, खदिरबन, वृन्दावन, भद्रबन, भण्डीरबन, बेलबन, लोहबन और महाबन ।” शूरसेन जनपद के उत्तर-पश्चिम की पहाड़ियां अरावली पर्वत की श्रृंखलाएं हैं, जो कामबन और उसके आगे तक फैली हुई हैं। मुख्य ‘चरन पहाड़ी' कहलाती है।
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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