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________________ 158 शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास इन पर बीच में तीर्थंकर मूर्ति तथा उसके चारों ओर विविध प्रकार के मनोहर अलंकरण मिलते हैं। स्वास्तिक, नन्दयावर्त, वर्धमान, श्रीवत्स, भद्रासन, दर्पण, कलश, और मीनयुगल आदि अष्टमंगल द्रव्यों का आयागपट्टों पर सुन्दरता के साथ चित्रण किया गया है। अधिकांश कला-कृतियाँ ब्राह्मी लिपि में अभिलिखित है। मथुरा कला शैली के अन्तर्गत निर्मित मूर्तियों में हाथ में पुस्तक लिए हुए सर्वाधिक प्राचीन सरस्वती प्रतिमा, अभयमुद्रा में देवी आर्यावती तथा नैगमेष की अनेक प्रतिमाएँ विशेष उल्लेखनीय है। जो वर्तमान में मथुरा एवं राज्य संग्रहालय में सुसज्जित हैं। ___ कुछ कार्योत्सर्ग मुद्रा में भी है। अनेक सर्वतोभद्रिका प्रतिमा भी प्रकाश में आई जो कुषाण गुप्त तथा मध्यकाल की अमूल्य देन है। कलाकारों ने विभिन्न जिनों के प्रतिमाओं के निर्माण में दिव्य सौन्दर्य के साथ आध्यात्मिकता का भाव प्रदर्शित किया है। उसे देखकर विदित होता है। कि भावों को अभिव्यक्त करने में ये कलाकार कुशल तथा सिद्धहस्त थे। ___ जैन मूर्तिकला में तीर्थंकर के अतिरिक्त अन्य देवी देवता को रूप प्रदान किया गया है, उनमें यक्षों और यक्षिणियों की प्रतिमाएँ भी उल्लेखनीय है। प्रत्येक तीर्थंकर के साथ एक यक्ष और यक्षिणी का अंकन सर्वाधिक प्राप्त होता है। आदि तीर्थंकर ऋषभनाथ की यक्षिणी का नाम चक्रेश्वरी है। नवीं शती की देवी अम्बिका की भी पाषाण-प्रतिमा है। जो वर्तमान में लखनऊ संग्रहालय में संरक्षित है। इस प्रकार शूरसेन जनपद में वास्तुकला, मूर्तिकला, आदि के क्षेत्र में विशेष योगदान है। जैन स्तम्भ सबसे अधिक प्राचीनतम कंकाली टीले के अवशेषों में दृष्टव्य है। स्तूप का अंकन आयागपट्ट पर भी दृष्टिगोचर होता है। कला के क्षेत्र में इस जनपद में जैन धर्म का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। यहाँ के कलाकारों ने अपनी कुशलता का परिचय कलाकृतियों में दिखायी है।
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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