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________________ 156 शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास थे। मन्दिर धीरे-धीरे शिक्षा के महत्वपूर्ण केन्द्र बने जहाँ से धार्मिक तथा उच्च विचारों का प्रसार होता था। ___ मध्यकालीन जैन धर्म में चार ऐसे तत्व दृष्टिगोचर होते हैं। जिनसे सामाजिक ढाँचे को आधार प्राप्त हुआ। ये तत्व थे मन्दिर जैन मुनि और आचार्यों धार्मिक जीवन पर आधारित संघ तथा शिखा प्राप्त हुई।" ___ मन्दिर प्रासादों तथा प्रतिमाओं के निर्माण से स्थापत्य तथा मूर्तिकला को विशेष प्रोत्साहन प्राप्त हुआ। मन्दिरों में सामूहिक पूजा अर्चना के साथ-साथ शिक्षा तथा धार्मिक विचारों के प्रसार की व्यवस्था थी। अनेक देवालयों में धार्मिक संगीत तथा नाट्य का आयोजन होता था। मौर्य, शुंग तथा कुषाण एवं सातवाहन काल में कला पक्ष प्रधान था। इस समय इमारतों की भव्यता और विशालता पर विशेष बल दिया जाता था। कुषाण काल में मूर्तियों को परिपक्वता प्राप्त हुई। शुंग-कुषाण काल की प्रस्तर प्रतिमाओं के अतिरिक्त आरम्भिक मृणमूर्तियाँ भी प्राप्त हुई हैं, जिनमें मातृकाओं की प्रतिमाएँ भी प्राप्त हुई हैं, जो प्रागैतिहासिक कालीन मूर्तियों की अपेक्षा अधिक विकसित है। ____ उक्त मूर्तियों के चेहरे हाथ से निर्मित न होकर साँचों से बनाये गए हैं। इनकी आकृति भी पशु-पक्षी की न होकर मानव की है। शरीर का शेष भाग साँचे की बजाय हाथ का गढ़ा हुआ है। प्राचीनतम मूर्तियों की भाँति इनके आभूषण भी अलग से चिपके हुए हैं और इनके रंग भी सलेटी है। इनके नेत्र बड़े और केश सुसज्जित हैं। मथुरा संग्रहालय में इस काल की मृणमूर्तियां उल्लेखनीय हैं। तत्कालीन समय में मातृकाओं की प्रतिमाओं के अतिरिक्त मिट्टी के खिलौने भी निर्मित होने लगे थे। एक हाथी का खिलौना संरक्षित ___ यह आधुनिक खिलौने के समान है। इसे देखकर यह कल्पना करना कठिन है कि यह अत्यधिक प्राचीन है।
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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