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________________ शूरसेन जनपद में जैन धर्म का योगदान 155 शूरसेन जनपद का जैन धर्म एवं दर्शन की भाँति कला के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान है। प्राचीन काल में वास्तुकला, मूर्तिकला, चित्रकला, संगीत तथा नृत्यकला का अत्यधिक विकास दृष्टिगोचर होता है। ___ जैन साहित्य में नगर निवेश, पथ, भवन आदि के निर्माण के विषय में विस्तृत विवरण उपलब्ध हैं। भगवान महावीर ने मूर्तिपूजा का कोई विधान घोषित नहीं किया था परन्तु मानव में अपनी श्रद्धा को व्यक्त करने का प्रतीक आरम्भ से रहा है। इसके फलस्वरूप मूर्तियों और मन्दिरों का उद्भव हुआ। जैन परम्परा में सर्वाधिक प्राचीन अभिलेख कलिंग के शासक खारवेल द्वारा उत्कीर्ण कराए गए, हाथी गुफा अभिलेख में प्राप्त हुआ ___ शूरसेन जनपद में शुंगकाल से जैन स्तूपों, आयागपट्टों और मूर्तियों के निर्माण की परम्परा दृष्टिगोचार होती है। उल्लेखनीय रुप से शुंग कुषाणकाल से लेकर उत्तर मध्यकाल तक देश भर में बड़े रूप में जैन प्रतिमाओं तथा मन्दिरों का निर्माण हुआ। मथुरा कला शैली के अन्तर्गत निर्मित प्रस्तर प्रतिमाओं एवं अन्य कलाओं का निर्माण प्रारम्भ हुआ और देश भर में भेजी जाने लगी। आयागपट्ट पूजा के लिए निर्मित किए जाते थे। प्रतिमाएँ तथा मन्दिर जनसभाओं के नैतिक चरित्र को ऊँचा उठाने का माध्यम है। भारतीय कलाओं को जैन धर्म का अभूतपूर्व योगदान है। विभिन्न राजवंशों, धार्मिक वर्गों तथा जनसाधारण ने कलाओं के उत्थान में प्रचुर योगदान दिया। ___ जैन मन्दिरों का निर्माण सम्पूर्ण भारत में व्यापक स्तर पर किया गया। जैन समाज के धनिक वर्ग ने अपनी आय के बड़े भाग का उपयोग मन्दिरों के निर्माण के लिए किए। उनके प्रोत्साहन से समाज में शिल्पियों का बड़ा वर्ग तैयार हो गया। इन मन्दिरों से समाज की धार्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति हुई। मन्दिरों से पूजा स्थल में लोग एकत्र होते
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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