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________________ 150 शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास की गई। इस धर्म में अहिंसा को एक नैतिक गुण माना गया है। जब तक नैतिक स्तर ऊँचा नहीं होगा, तब तक व्यवहार भी ऊँचा नहीं हो सकेगा। मानव-व्यवहार की समीक्षा करने के लिए अहिंसा सर्वश्रेष्ठ नैतिक स्तर है। सामाजिक स्तरों एवं नैतिक निर्णयों में गिरावट आ जाने पर कोई भी समाज, संगठन या राष्ट्र गरिमा के साथ जीवित नहीं रह सकता। उचित या अनुचित का निर्णय व्यक्ति के स्तर पर निर्भर करता है। ___ समाज में कुछ ऐसे लोग अवश्य होने चाहिए जो दृढ़ता से नैतिकता का पालन करें। जैन मुनि ऐसे ही व्यक्तित्व हैं; जो अहिंसा तथा अपरिग्रह के सिद्धान्तों का दृढ़तापूर्वक आचरण करते हैं। जैन मुनियों ने समाज को सर्वाधिक प्रभावित किया। समाज जैन मुनियों का सम्मान करता है तथा उनके समान जीवनचर्या अपनाने का प्रयत्न करता है। जैन धर्म में अहिंसा को एक प्रमुख महाव्रत के रूप में स्थान प्राप्त है। ___ अहिंसा महाव्रत से तात्पर्य पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति और त्रस- ये छह कायिक जीव, इन्द्रिय, गुणों स्थान, मार्ग, कुल, आयु और योनि इनमें जब जीवों को उपस्थित जानकर उठने-बैठने आदि क्रियाओं में हिंसा आदि का त्याग करना अहिंसा महाव्रत है। ____ भगवती अराधना में उल्लिखित है- “जैसे मुझे दुःख प्रिय नहीं है वैसे ही उन जीवों को भी दुःख प्रिय नहीं है, ऐसा जानकर सदा अपनी ही तरह सभी जीवों के प्रति समान अहिंसापूर्ण व्यवहार करना चाहिए।"32 ___ भूख, प्यास, रोग, शीत तथा आपात से पीड़ित होने पर भी अन्य प्राणियों का घात करके अपनी भूख-प्यास आदि को शान्त करने की बात तक मन में नहीं लाना चाहिए। जैन दर्शन अहिंसा मात्र किसी के घात से बचना ही नहीं अपितु वाणी से न किसी को ठेस पहुँचाना और न ही मन में किसी प्रकार की दुर्भावना लाना है।
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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