SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 173
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शूरसेन जनपद में जैन धर्म का योगदान 149 भारतीय संस्कृति की आत्मा भी धर्म है। यही कारण है कि यहाँ अनेक धर्म पल्लवित पुष्पित हुए हैं। पं. कैलाश चन्द्र शास्त्री के मतानुसार जैनधर्म किसी ईश्वर की सत्ता में विश्वास नहीं करता। वह जीवात्मा को सर्वज्ञ स्वीकार करता है। अतः जैन धर्म किसी ईश्वर या किसी स्वयंसिद्ध पुस्तक के द्वारा नहीं कहा गया है, बल्कि, उस मानव के द्वारा जो कभी हम ही जैसा अल्पज्ञ और रागद्वेषी था, किन्तु जिसने अपने पौरूष से प्रयत्न करके अपनी अल्पज्ञता और रागद्वेष के कारण से अपनी आत्मा को मुक्त कर लिया। इस तरह वह सर्वज्ञ और वीतरागी होकर जिन बन गया, कहा गया है। अतः 'जिन' हुए उस मानव के अनुभवों का सार ही जैन धर्म है। जिस प्रकार शिव को देवता मानने वाले शैव और उनके धर्म को शैव धर्म तथा विष्णु को देवता मानने वाले वैष्णव तथा उनके धर्म को वैष्णव धर्म कहते हैं। उसी प्रकार 'जिन' को देवता मानने वाले जैन तथा उनके धर्म को जैन धर्म स्वीकार किया गया। विश्व के प्रायः सभी धर्मों में हिंसा को हेय माना गया है, परन्तु उसे त्याज्य नहीं माना गया है। भारतीय परम्परा में धर्म के लक्षणों में एक अहिंसा है। किन्तु अहिंसा को धर्म का आधार या अंग स्वीकार करने का मुख्य श्रेय श्रमण-परम्परा को है। अहिंसा और सत्य जैन धर्म के आदर्श सिद्धान्त है। जैन धर्म में अहिंसा को चरम सीमा तक पहुँचाया गया है और उसे दृढ़ता से अपनाया गया है। अहिंसा के अन्तर्गत भावना और विचार को लेकर भगवान महावीर ने आत्म शुद्धि का व्यावहारिक रूप सहज कर दिया। भारतीय संस्कृति के संस्कार पक्ष को जैन धर्म में मान्य अहिंसा ने अविरल प्रभावित किया है। जैन धर्म ने अहिंसा को धर्म का मूल आधार मानकर मानवेतर प्राणियों के लिए भी जीने का अधिकार माना तथा इसे धार्मिक दायित्व के रूप में समाज का कर्तव्य स्वीकार किया। जैन धर्म में व्यापक स्तर पर अहिंसा की व्याख्या की गई है। मुनि तथा गृहस्थ के लिए अहिंसा पालन की अलग-अलग सीमाएं निर्धारित
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy