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________________ शूरसेन जनपद में जैन धर्म का योगदान 143 से यह महत्वपूर्ण जानकरी प्राप्त होती है कि राजा, युवराज, सेनापति और मन्त्री आदि का शासनतन्त्र में विशेष महत्वपूर्ण स्थान था। __शूरसेन जनपद में शौरसेनी के साथ-साथ मागधी, प्राकृत, संस्कृत आदि भाषाओं का प्रचलन था। इसी प्रकार मागधी और अर्द्धमागधी मगध की प्रमुख भाषा थी। शौरसेनी का घनिष्ठ सम्बन्ध ‘मध्यदेश' से था, जो प्राचीन भारतीय संस्कृति का प्रमुख केन्द्र रहा है, और यह संस्कृत नाटकों की उत्पत्ति का केन्द्र माना जाता है। इसी प्रकार मागधी और अर्धमागधी की भाँति शौरसेनी का जन्म भी प्राचीन भारतीय भाषाओं से हुआ है। महाराष्ट्री इसके बाद आती है। दिगम्बर जैन आगमों की भाषा शौरसेनी है, अपितु श्वतोम्बर जैन आगमों की भाषा अर्द्धमागधी हैं। शूरसेन आचार्यों की प्रवृत्तियों का प्रमुख केन्द्र रहा है, अतएव उनकी रचनाओं में शौरसेनी की प्रमुखता परिलक्षित होती है। दिगम्बर एवं श्वेताम्बर आगम ग्रन्थों की भाषाओं में सबसे बड़ा अन्तर यह है कि अर्द्धमागधी में रचित आगमों में एकरूपता दृष्टिगोचर होती है। पिशल ने दिगम्बर आगम ग्रन्थों की शौरसेनी को जैन शौरसेनी का नाम दिया है। उनके मतानुसार बोलियों में जो बोलचाल की भाषाएं व्यवहार में प्रयोग की जाती हैं उनमें शौरसेनी का स्थान सर्वप्रथम एवं महत्वपूर्ण है। अंग ग्रन्थों को दिगम्बर एवं श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायों में समान स्थान प्राप्त है। द्वादशांग ग्रन्थों में ग्यारह अंगग्रन्थ पहले लिखे गये हैं और इन ग्यारह अंग-ग्रन्थों की भाषा आर्ष-वचन तथा अर्द्धमागधी है। यह भाषा सभी जन सामान्य के लिए सहज तथा सरल थी और इसे सम्पूर्ण भाषाओं की जननी भी स्वीकार किया गया है।" ___ आगम साहित्य दो प्राकृत भाषाओं में दृष्टव्य होते हैं- अर्द्धमागधी और शौरसेनी। ग्यारह अंग?, बारह उपांग, छः छन्दसूत्र, चार मूलसूत्र,
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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