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________________ शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास शूरसेन जनपद की साहित्यिक उपलब्धियों से भारतीय साहित्य समृद्ध हुआ। जैन आचार्य अपने आप में एक सम्पूर्ण संस्था थे। उनकी आवश्यकताएँ अत्यन्त सीमित थीं और उनका पूरा समय अध्ययन-अध्यापन, लेखन तथा धर्म प्रचार में व्यतीत होता था । 1 142 जैन आचार्य किसी विशिष्ट भाषा के प्रति पक्षपात नहीं रखते थे । उन्होंने देववाणी की उत्कृष्ठता पर बल नहीं दिया। उनके लिए सभी भाषाएं समान थीं। उन्होंने जनभाषाओं को समृद्ध किया। लोक-भाषा और साहित्य के प्रति जैन धर्मानुयायियों का सदैव आदर भाव रहा है। फलस्वरूप लोक भाषाओं में उपदेश एवं साहित्य-सृजन की परम्परा निरन्तर विद्यमान रही है जैन आचार्यों और लेखकों ने संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, तमिल, कन्नड़, तेलगू, मराठी और गुजराती आदि भाषाओं को अपने लेखन के द्वारा समृद्धि प्रदान की। उन्हें सशक्त लोकभाषाओं के रूप में साहित्य-सृजन के योग्य बनाया फलस्वरूप जैन धर्म एवं साहित्य जन साधारण तक पहुँच सका । अशोक, खारवेल, सातवाहन तथा कुषाण आदि राजाओं ने भी जनभाषाओं का महत्व स्वीकार किया और उन्हें शासन तन्त्र में प्रमुख स्थान दिया । " जैन आचार्यों ने सामाजिक कल्याण की भावना से प्रेरित होकर साहित्यिक गतिविधियों को प्रोत्साहित किया। भारत के राजनीतिक इतिहास एवं संस्कृति के सम्बन्ध में जैन साहित्य से महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश प्राप्त होते हैं । जैनाचार्यों का साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान रहा है T महावीर युगीन तथा परवर्ती इतिहास का विस्तृत चित्रण जैन स्रोतों से ज्ञात तथ्यों के आंकलन द्वारा मगध, शूरसेन, अवन्ति, वैशाली, वत्स आदि जनपदों का महत्व सहजता से ज्ञात होता है । ' जैन आचार्य परम्परा से सम्बन्धित ग्रन्थ, पत्र - प्रज्ञप्ति, पट्टावलियाँ इतिहास निर्माण में बहुत सहायक एवं उपयोगी सिद्ध हुई है। जैन स्रोतों
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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