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________________ शूरसेन जनपद में जैन संस्कृति 125 भोजन मनुष्य के जीवन की प्राथमिक आवश्यकता है। ‘आचारांग सूत्र' में अनेक फलों जैसे केला, विल्व, नारियल, ताड़, श्रीपर्णी, दाडिम, कसेरू और सिंघाड़ा आदि फलों का उल्लेख मिलता है। यद्यपि जैन समाज में धार्मिक दृष्टि से मांसाहार वर्जित है। शूरसेन जनपद में मूर्तिकला एवं स्थापत्य कला के माध्यम से इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण सांस्कृतिक विकास हुआ। कंकाली टीले के उत्खननों द्वारा असंख्य प्रतिमाएं प्रकाश में आयीं, जिनके अध्ययन से स्पष्ट होता है कि शूरसेन जनपद कला का एक प्रमुख केन्द्र था। भगवान ऋषभनाथ, पार्श्वनाथ, नेमिनाथ एवं महावीर स्वामी की अनेक प्रतिमाएँ प्रमुख रूप से उपलबध हुई हैं। शूरसेन जनपद से प्राप्त प्रतिमाओं के अध्ययन से विदित होता है कि जैन धर्मानुयायियों में विदेशी भी होते थे परन्तु जैन धर्म ने जाँति-पाँति को तोड़कर विदेशियों को भी आत्मसात कर लिया था। फलस्वरूप विदेशियों ने भी दान आदि कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका अभिनित की। ___ शूरसेन जनपद में महिलाओं ने जैन धर्म के प्रति अगाध श्रद्धा प्रकट की। यह भाव उनके द्वारा स्थापित किये गये दान आयागपट्ट, प्रतिमाएं तथा अन्य कलाकृतियों की उपलब्धता से ज्ञात होता है। तत्कालीन समय में स्त्रियों का सम्माननीय स्थान था। उन्हें भी धार्मिक कार्य करने की स्वतन्त्रता थी। ___ कंकाली टीले से प्राप्त एक ई. पू. प्रथम शती का आयागपट्ट प्राप्त हुआ है। लेख के अनुसार फर्गुयश नर्तक की पत्नी शिवयशा ने स्थापित करवाया था। इससे यह स्पष्ट होता है कि शूरसेन जनपद में प्रत्येक वर्ग को स्वेच्छा से सांस्कृतिक एवं धार्मिक कार्यों को करने की स्वतन्त्रता थी। अन्य प्रतिमाओं में अंकित नारी आकृतियों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि उस समय स्त्रियों की सम्मानजनक स्थिति थी। 'ऋग्वेद' में 'नृत' शब्द का उल्लेख हुआ है, जिसका अर्थ है ‘नर्तकी' 132 ‘वाजसनेयी संहिता' में वेश्यावृत्ति को एक पेशा स्वीकार
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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