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________________ 124 शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास में आ गया। गंगा के मैदान का दक्षिणी मार्ग इन्द्रप्रस्थ से शूरसेन जनपद की राजधानी मथुरा होता हुआ इलाहाबाद के पास कौशाम्बी पहुँचता था और वहाँ से चुनार जाता था। महाभारत में देशी और विदेशी बन्दरगाहों का उल्लेख मिलता है। इन्द्रप्रस्थ से चलकर एक मार्ग मथुरा-मालवापथ से माहिष्मती होकर पोतनपुर पैठन (बोधन जो हैदराबाद राज्य में मंजिरा और गोदावरी नदियों के संगम के दक्षिण में स्थित था) पहुँचता था। शूरसेन जनपद घोड़ों के व्यापार के लिए प्रसिद्ध था। उपगुप्त की कथा में उल्लिखित है कि शूरसेन जनपद में एक पंजाब का व्यापारी पाँच सौ घोड़े लेकर आया। वह इतना धनी था कि शूरसेन जनपद की राजधानी में प्रवेश करते ही उसने वहाँ की सबसे बहुमूल्य गणिका की माँग की। ___ काशी और इन्द्रप्रस्थ के मध्य जल मार्ग द्वारा भी व्यापार होता था। काशी से नाव द्वारा गंगा से प्रयाग उसके बाद व्यापारी यमुना द्वारा इन्द्रप्रस्थ पहुँचते थे। इससे यह स्पष्ट होता है कि शूरसेन जनपद की राजधानी मथुरा जलमार्ग द्वारा व्यापार करने का प्रमुख केन्द्र भी रही। __ शूरसेन जनपद में सिंचाई की उत्तम व्यवस्था थी। सिंचाई के लिए रहटों का प्रबन्ध था। गेहूँ, धान, गन्ना, चना, कोदो, मूंग, उड़द और मोंट आदि समस्त धान्य उत्पन्न होते थे। गेहूँ की खेती शूरसेन जनपद में विशेष रूप से होती थी। दूध-दही की प्रचुरता थी। ___ शूरसेन जनपद आर्थिक दृष्टि से अत्यन्त समृद्धि एवं सम्पन्न था। सामान्य जनता भी, गन्ध माला, दूध आदि पदार्थों का उपभोग करती थी। यात्रियों को विश्राम के साथ-साथ भोजन भी प्राप्त होता था। यात्रियों के लिए प्याऊँ, भोजन-शालाएँ और विश्राम शालाएँ भी निर्मित थीं। शूरसेन जनपद व्यापार के लिए विख्यात था। यहाँ वस्त्र उत्तम कोटि का निर्मित होता था। मथुरा कला शैली के अन्तर्गत निर्मित प्रतिमाएँ बनारस, श्रावस्ती तथा अन्य स्थानों को भेजी जाती थीं।
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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