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________________ शूरसेन जनपद में जैन मूर्तिकला 86 ___ गुप्तकालीन ग्रन्थों के अनुसार जिन मूर्तियाँ श्रीवत्स चिन्ह से युक्त, निर्वस्त्र, आजानुलम्बबाहु और तरुण रूप होनी चाहिए। जिन-मूर्तियाँ पूरी तरह से अलंकरण-विहिन होनी चाहिए। गुप्तकाल में अष्ट-प्रतिहार्यों का नियमित अंकन प्रारम्भ हो गया। ये अष्ट-प्रतिहार्य थे- अशोक वृक्ष, चवँर, देव पुष्पवृष्टि, मालाधर गन्धर्व, दिव्य ध्वनि, सिंहासन, त्रिछत्र, देव दुन्दुभि एवं प्रभामण्डल। गुप्तकाल में ही मुख्य जिन-आकृति के सिंहासन या परिकर में छोटी-छोटी जिन मूर्तियों के अंकन की परम्परा प्रारम्भ हुइ।8। ___ अध्ययन क्षेत्र से पार्श्वनाथ की अपेक्षा ऋषभदेव की अधिक प्रतिमाएं प्राप्त हुई है। ऋषभदेव की प्रमुख प्रतिमाओं को उनके विशिष्ट लक्षण से पहचान सकते हैं। कन्धों तक फैली हुई जटाओं से यह पहचान सम्भव है। गुप्तकालीन एक अभिलिखित प्रतिमा वर्णित क्षेत्र से प्राप्त हुई है । इस पर तीर्थंकर 'ऋषभ' का नाम भी अंकित है। लेख के अनुसार इसे समुद्र और सागर नामक दो उपासकों ने प्रतिष्ठित कराया था। तीर्थंकर शान्तिनाथ की एक प्रतिमा वर्णित क्षेत्र से प्राप्त हुई है।" उसके सिंहासन पर हरिणों का अंकन किया है। गुप्तकालीन तीर्थंकर का विशाल मस्तक मिला है जिससे मूर्ति की विशालता का बोध होता है।92 नेमिनाथ की एक खण्डित प्रतिमा वर्णित क्षेत्र से प्राप्त हुई है। दायें बलराम एवं बायें कृष्ण की चतुर्भुज मूर्तियाँ शोभायमान हैं। बलराम की एक भुजा से हल तथा दूसरी जानु पर स्थित है। कृष्ण की एक भुजा में गदा और चक्र का अंकन किया गया है। जिन प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में प्राप्त हुई है। पाद-पाठिका पर दायें-बायें एक सिंह भीतर की ओर पीठ किए बैठे हैं। __एक अन्य पार्श्वनाथ की प्रतिमा लाल चित्तीदार बलुए पत्थर पर ध्यानस्थ है। वक्ष पर श्रीवत्स, कान लम्बे, उभरी हुई बादाम जैसी
SR No.022668
Book TitleShursen Janpad Me Jain Dharm Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSangita Sinh
PublisherResearch India Press
Publication Year2014
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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