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शूरसेन जनपद में जैन धर्म का विकास
आँखें, मुंडित सिर, गले की दो रेखाएं एवं दोनों कोहनियां बाहर को निकली हुई अंकित है।
जिन भगवान के पीछे सर्प की कुण्डलिनी दोनों ओर बनाई गई है। अर्हन्त पर सात फणों का अंकन है जिसमें चार फण ही शेष है; अन्य खण्डित हो गए हैं। सर्पफणों के ऊपर पुष्प गुच्छ, स्वास्तिक, मत्स्ययुग्म एवं पूर्णघट का स्पष्ट अंकन किया गया है। यह कंकाली टीला से प्राप्त तीसरी शती ई. की प्रतिमा है।
महावीर स्वामी की गुप्तकालीन प्रतिमाएं दुर्लभ है। लाल चित्तीदार बलुए पत्थर की कायोत्सर्ग प्रतिमा की दो चरण-चौकी महावीर स्वामी की शेष है। ___ पादपीठिका के ऊपर दो घुमावदार डाटों के ऊपरी भागों पर माहवीर के दोनों चरणों के पंजे मात्र है। मूलनायक के बायें एक उपासक का निचला भाग व दायीं ओर दो उपासकों के अधोभाग ही शेष है। ये सभी अधोवस्त्र एवं उत्तरीय धारण किये हुए हैं। यह अभिलिखित है और गुप्तकालीन है। ____ पाँचवीं शती ई. का एक जिन मस्तक वर्णित क्षेत्र से प्राप्त हुआ है। केश धुंघराले, भौहें धनुषाकार, आँखें, पूर्ण कमलवत, नाक खण्डित तथा कान लम्बे हैं।
एक अन्य गुप्तकालीन मस्तक पर उष्णीष है। आँखें बड़ी एवं नुकीली हैं। यह लाल चित्तीदार पत्थर पर अंकित है।
एक अन्य मस्तक कंकाली टीले से मिला है। माथे पर तिलक, कान लम्बे, भौहें तथा होठ स्फुटित दिखाए गए हैं।100 ___ गुप्तकालीन एक सर्वतोभद्रिका प्रतिमा अध्ययन क्षेत्र से प्राप्त हुई है। चारों ओर चार जिनों का अंकन किया गया है। प्रथम जिन आदिनाथ, सातवें जिन सुपार्श्वनाथ, तेईसवें जिन पार्श्वनाथ तथा अन्तिम जिन महावीर स्वामी की प्रतिमाएं हैं।