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संमूर्छिम मनुष्य : आगमिक और पारंपरिक सत्य
इस तरह, रामलालजी महाराज द्वारा B-3 क्रमांक विचारबिंदु में पेश किए गए आचारांग सूत्र के पाठ से तो संमूर्छिम मनुष्य की विराधना अपनी प्रवृत्ति से अशक्य होने का तो सिद्ध नहीं होता, प्रत्युत संमूर्छिम मनुष्य की विराधना न हो जाए तदर्थ उद्यमवंत ओर यतनावंत रहने की बात फलित होती है। इस तरह स्पष्टतया आगमिक तथ्य निखर आने पर भी संमूर्छिम मनुष्य को अविराध्य मानने का आग्रह असंख्य संमूर्छिम मनुष्यों की हिंसा बोलो या खून, उसमें निमित्तभूत बनता है। . तीन-तीन मल्लक रखने की बात की स्पष्टता
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B-4 क्रमांक विचारबिंदु में श्रीरामलालजी महाराज का यूँ कहना है कि “चातुर्मास के दौरान उच्चार-प्रस्रवण-खेल (= श्लेष्म कफ) के लिए तीन-तीन मात्रक लेने का विधान किया है। जिससे एक-दो मात्रक भर जाए तो भी तकलीफ न हो । यहाँ तीन मात्रक को रखने का विधान किया है कि जो संमूर्छिम मनुष्य की कायिक विराधना अशक्य होने का सूचन करता है।"
परंतु यह बात भी सत्य से लाखों योजन दूर है, क्योंकि जब बाहर बारिश गिरती हो तभी मात्रक में मूत्रादि के स्थापन का विधान है। (अन्यथा शेषकाल के लिए ऐसा विधान क्यों नहीं किया?) ये रहे निशीथसूत्रचूर्णि (गा.३१७२) के शब्द - "इमं कारणं - जं संजमनिमित्तं वरिसंते एगम्मि वाहडिते बितिय-ततिएसु कजं करेति।"
बाहर बारिश गिर रही हो तब मूत्रादि का विसर्जन करने पर भी संमूर्छिम मनुष्य की विराधना तो रुकती नहीं। उपरांत में अत्यधिक अप्काय की विराधना भी होती है। भीगे हुए वस्त्रों में निगोदादि की संभावना तो मुनाफे में। जब बारिश चल रही हो तब मूत्रादि बाहर न परठते हुए अपने मात्रक में ही रखने से अब सिर्फ संमूर्छिम मनुष्य की
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