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________________ 72 तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य तत्क्षण हृदयङ्गम कर लेता है। काव्यमर्मज्ञता का बोध उस समय होता है, जब मत्तकोकिल उद्यान में मंजीर नामक वन्दिपुत्र आर्या छन्दोबद्ध' श्लोक सुनाकर उसका अर्थ करने को कहता है। राजकुमार हरिवाहन अपनी कुशाग्र बुद्धि से संदर्भ सहित उस आर्या का भावार्थ समझा देते है। इस पर सभी राजकुमार इसकी काव्य प्रतिभा की प्रशंसा करते है। हरिवहन काव्य रचना भी उत्तम कोटि की है। एलालता-मण्डप में तिलकमञ्जरी को देखकर उसके सौन्दर्य की प्रशंसा में दो पद्यों में अनायास ही उसके भाव प्रकट हो जाते है। जो उसकी काव्य प्रतिभा को प्रदर्शित करते है। हरिवाहन को तिलकमञ्जरी कभी तो राहु के ग्रस लेने से गिरी हुई चन्द्रमा को शोभा के समान लगती है, कभी समुद्र मन्थन से घबराकर निकली हुई अमृत की देवी लगती है, और कभी शिव की नेत्राग्नि से जले हुए कामदेव रूपी वृक्ष से उत्पन्न हुई नवकंदली लगती है।" तिलकमञ्जरी के अतिशय सौन्दर्य के लिए कितनी सुन्दर कल्पनाएँ की गई है। हरिवाहन, तिलकमञ्जरी की बड़ी-बड़ी आँखों को देखकर सोचता कि उसकी भोली-भाली आँखें सभी प्रकार के वृतान्तों को सुनने के कारण विद्वान् कानों के पास तक इसलिए चली गई है, मानों वे कानों से यह पूछना चाहती हैं कि तीनों लोकों में तिलकमञ्जरी से अधिक सुन्दर शरीर किसी अन्य युवती का हो सकता है?" तिलकमञ्जरी की बड़ी-बड़ी आँखों के लिए कितनी सुन्दर कल्पना की गई है। आँखों ने अब तक ऐसा रूप कहीं नहीं देखा है जैसा तिलकमञ्जरी का है, परन्तु हो सकता है कि कानों ने कभी किसी युवती के सौन्दर्य की प्रशंसा सुनी हो। इसी कारण यही पूछने के लिए आँखें कानों तक लंबी होती चली गई हैं। इसी प्रकार जब वह अदृष्टपार सरोवर के समीप जिन मंदिर में मलयसुन्दरी 9. गुरुभिरदत्तां वोढुं वाञ्छन्मामक्रमात्त्वमचिरेण । स्थातासि पत्रपादपगहने तत्रान्तिकस्थाग्निः ।। ति. म., पृ. 109 ग्रहकवलनाद्धृष्टाः लक्ष्मी: किमृक्षपतेरियं ...सुभूरियं नवकन्दली ।। वही, पृ. 248 जानीथ श्रुतशालीनौ युवामावां प्रकृत्युर्जुनी ... मृगदशः कर्णान्तिकं लोचने।। वही, पृ. 248 10. 11.
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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