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________________ तिलकमञ्जरी के पात्रों का चारित्रिक सौन्दर्य बैठती हैं। और काम से पीड़ित होकर हरिवाहन के पुनः दर्शन हेतु वह मलयसुन्दरी के आश्रम में आती है। गन्धर्वक, जो राजकुमारी मलयसुन्दरी के पाणिग्रहण योग्य राजकुमार की खोज में लगा हुआ है, वह भी रूप, यौवन व गुणों से युक्त हरिवाहन को ही तिलकमञ्जरी के योग्य पाता है। सभ्य और शिष्ट : हरिवाहन अत्यंत सभ्य और शिष्ट पुरुष है। जब वह प्रथम बार तिलकमञ्जरी से मिलता है, तो वह बहुत शिष्टता से अपना परिचय उसे देता है तथा उसके और उस देश के बारे में पूछता है। निर्जन वन में मलयसुन्दरी से मुलाकात होने पर वह अत्यन्त शालीनता व सज्जनता से उसके वनवास के कारण पूछता है। उस निर्जन वन में भी मलयसुन्दरी के सामीप्य से भी उसके मन में कोई विकार उत्पन्न नहीं होता। भ्रमणशील : राजकुमार हरिवाहन को घूमने फिरने का बहुत शौक है। इसे वनों, उपवनों व नदी के किनारों पर घूमना बहुत पंसद हैं। मनोरंजन के लिए समरकेतु व अन्य साथी राजकुमारों के साथ सरयू नदी के समीप स्थित मत्तकोकिल नामक मनोहारी उद्यान में समय व्यतीत करना इसे पसंद है। कामज्वर से पीड़ित होने पर भ्रमणशीलता ही इसके हृदय की पीड़ा को कुछ कम करती है। तिलकमञ्जरी के चित्र दर्शन मात्र से ही हरिवाहन के हृदय में काम प्रवेश कर जाता है। गन्धर्वक के वापस न आने से निराश हरिवाहन को जब कामोत्कंठा पीड़ित करती है, तो वह काम के वेग को कम करने के लिए भ्रमण का ही आश्रय लेता है और साम्राज्य निरीक्षण के बहाने से देशाटन के लिए निकल पड़ता है। काव्यमर्मज्ञ : हरिवाहन एक उच्च कोटि का कवि भी है। हरिवाहन ने सोलह वर्ष की आयु में ही सभी विद्याओं और शास्त्रों को हृदयङ्गम कर लिया था। शास्त्राध्ययन से उसकी बुद्धि इतनी तीक्ष्ण हो गई है कि वह कविता के मर्म को 5. 6. ति. म., पृ. 289-90 सलिलपरिवर्तितमुखी तत्क्षणमेव सा ..... तीक्ष्णतरङ्गमालामिव शृंगारजलधेः धवलीकृतदिगन्तां ज्योत्स्नामिव लावण्यचन्द्रोदयस्य ...... मुकुलितां मदेन विस्तारितां विस्मयेन, प्रेरितामभिलाषेण, विषमितां वीडया, वृष्टिमिवामृतस्य, सृष्टिमिवासौख्यस्य, प्रकृष्टान्त:प्रीतिशंसिनी वपुषि मे दृष्टिमसृजत्। वही;, पृ. 362 वही, पृ. 249 वही, पृ. 258 7. 8.
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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