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________________ 6 तिलकमञ्जरी का कथासार 'प्रमोद' विवृत्ति। 5. सप्तभङ्गी-नयप्रदीपप्रकरण पर 2,000 श्लोकात्मिका बालावबोधिनी वृत्ति। 6. जैनतर्कपरिभाषा पर 14,000 श्लोकात्मिका 'तत्त्वबोधिनी' विवृत्ति। 7. नयामृततरङ्गिणी ग्रन्थ पर 'नयोपदेश' नामक टीका। 8. श्री हरिभद्रसूरि कृत शास्त्रवार्तासमुच्चय ग्रन्थ पर 25,000 श्लोक प्रमित विवृत्ति। 9. हेमचन्द्राचार्य के 'काव्यानुशासन' पर 30,000 श्लोकात्मिका वृत्ति। उनके इन सभी कार्यों से ज्ञात होता है, कि श्री विजयलावण्यसूरि न्यायशास्त्र, व्याकरणशास्त्र, साहित्यशास्त्र, और ज्योतिषशास्त्र के प्रकाण्ड पण्डित थे। (ग) पण्यास पद्मसागर" : पद्मसागर का समय 16 वीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध है। ये धर्मसागरगणि के शिष्य थे। पण्यास पद्मसागर ने तिलकमञ्जरी पर वृत्ति की रचना की। श्री विजयसेनसूरि ने उन्हें इस पर कार्य करने के लिए प्रेरित किया। तिलकमञ्जरी पर वृत्ति के अतिरिक्त उनके अन्य कार्य इस प्रकार से हैं - 1. न्याय प्रकाश टीका 2. शील प्रकाश 3. धर्म परीक्षा 4. जगद् गुरु काव्य 5. उत्तराध्यन कथा संग्रह 6. युक्ति प्रकाश टीका सहित 7. प्रमाण प्रकाश वृत्ति सहित 8. यशोधरा चरित 9. स्थूलिभद्र चरित 15. तिलकमञ्जरी, (सं) एन. एम. कन्सारा, भूमिका, पृ. 27-28
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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