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तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य
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1050 श्लोक टिप्पनक रूप वृत्ति की रचना की। यह टिप्पणक तिलकमञ्जरी के पाठकों को कठिन शब्दों का अर्थ समझने में सहायता करता है। शान्तिसूरि ने चन्द्रदूत काव्य, मेघाभ्युदयकाव्य, वृन्दावनयमकम्, राक्षसमहाकाव्य और घटखर्परकाव्य नामक पाँच यमक काव्यों पर भी वृत्ति की रचना की है।" (ख) विजयलावण्यसरि : विजयलावण्यसूरि का समय 19वीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध है। श्री विजयलावण्यसूरि का जन्म वि. सं. 1953 (सन् 1897) में सौराष्ट्र के एक ग्राम बोटाद में हुआ। इनके पिता का नाम जीवन लाल व माता का नाम अमृत था। इन्होंने अठारह वर्ष की आयु में श्री विजयनेमिसूरि से दीक्षा प्राप्त कर मुनि श्री लावण्यविजय' के नाम से प्रसिद्धि को प्राप्त किया। इन्होंने तिलकमञ्जरी पर 'पराग' नामक विस्तृत टीका लिखी है। यह टीका तिलकमञ्जरी को हर प्रकार से समझने में अत्यधिक सहायक है, परन्तु यह टीका तीन भागों में अपूर्ण रूप से प्रकाशित है।" इस टीका में श्री विजयलावण्यसूरि ने लगभग सभी शब्दों पर टीका की है।
विजयलावण्यसूरि एक उच्च कोटि के विद्वान् थे। उन्होंने न केवल तिलकमञ्जरी पर समृद्ध टीका की रचना की, अपितु आचार्य हेमचन्द्र द्वारा सूचीकृत सभी 1974 धातुओं की सभी कालों तथा भावों में विस्तृत व्याख्या की हैं।" पराग टीका के अतिरिक्त उनकी नौ और रचनाएँ हैं - 1. धातुरत्नाकर, 4,50,000 श्लोकों से युक्त यह सात भागों में हैं तथा इसमें
समस्त धातुओं के प्रक्रिया सम्बन्धि रूपों का विवेचन किया गया है। 2. हेमचन्द्रसूरि के शब्दानुशासन की स्वोपज्ञ वृहत्-न्यास की अशुद्धि
संशोधन की 20,000 श्लोकों में विस्तृत व्याख्या। 3. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र पर 4,000 श्लोकों से युक्त त्रिसूत्रिप्रकाशिका विवृत्ति। 4. यशोविजयगणि के 'नयरहस्य' नामक ग्रन्थ पर 3,000 श्लोक प्रमित
11. ति.म., भाग-1, भूमिका, पृ. 19 12. तिलकमञ्जरी, विजयलावण्यसूरीश्वरज्ञानमन्दिर, बोटाद, सौराष्ट्र, भाग-1, 2, 3, वि.
सं. 2008, 2010, 2014 13. तिलकमञ्जरी, (सं) एन. एम. कन्सारा, भूमिका, पृ. 29 14. तिलकमञ्जरी, विजयलावण्यसूरीश्वरज्ञानमन्दिर, भाग-1, भूमिका, पृ. 21-22