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तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य
61 ज्ञात हुआ है कि कुमार विजयार्घ पर्वत के सार्वकामिक प्रपात शिखर पर चढ़े थे, इसके पश्चात् क्या हुआ कुछ ज्ञात नहीं। यह सुनकर तिलकमञ्जरी अत्यधिक दुखी हो गई और जल समाधि का निश्चय कर अदृष्टपार सरोवर की ओर चली पड़ी। उसी समय महाप्रतिहारी ने आकर तिलकमञ्जरी को बताया कि आपके पिता ने कहा है अवितथों व शुभ निमित्तों से यह ज्ञात हुआ है कि कुमार हरिवाहन सकुशल हैं। अपने अथवा किसी अन्य के प्रयोजन से ही कही गए हैं। उन्हें खोजने के लिए छः मास का समय देकर विद्याधर भेज दिये गए है। अतः तब तक आप धैर्य धारण करें। यह सुनकर तिलकमञ्जरी ने किसी प्रकार समय बितायां आज छठे मास को समाप्त होने में एक दिन शेष है। निराश तिलकमञ्जरी के शरीर त्याग के निश्चय को देखकर दु:खी होकर मैं उससे पहले प्राण त्यागने का संकल्प करके इस सार्वकामिक प्रपात पर आया था। वहाँ चढ़ते ही विद्याधर मुझे पकड़कर आपके सामने ले आए।
गन्धर्वक का सारा वृत्तान्त सुनकर मुझे पूर्व जन्म में अनुभूत स्वर्ग निवास के सभी सुख याद आ गए और कुछ क्षणों के लिए मोह में पड़ गया। तुरन्त ही तिलकमञ्जरी के मरण वार्ता को स्मरण कर मैं अभिषेक पीठ से उठ गया और समीपवर्ती विद्याधर कुमारों के साथ शीघ्रता से एकशृंग पर्वत के जिनायतन में गया। वहाँ पर मुझे देखकर आनन्दित मलयसुन्दरी को अपनी वार्ता सुनाने के लिए गन्धर्वक को उसके पास छोड़कर मैं तिलकमञ्जरी के पास गया और विरहाग्नि से सन्तप्त तिलकमञ्जरी का सन्ताप दूर किया। उसके पश्चात् मैं उसके साथ बैठा ही था कि तुम गन्धर्वक के साथ आ गए।
(यहाँ हरिवाहन द्वारा वर्णित वृत्तान्त समाप्त होता है) इस वृत्तान्त को सुनकर समरकेतु को छोड़कर पाश्वर्ती सभी नभश्चर आनन्दित हुए। समरकेतु अपने पूर्वजन्म को याद कर शोक से व्याकुल हो गया। हरिवाहन उसे सान्त्वना देने लगा। उसी समय विद्याधर सम्राट विचित्रवीर्य के कल्याणक नामक सेवक ने आकर हरिवाहन को एक पत्र दिया। उसमें लिखा था कि मलयसुन्दरी का विवाह आपके भ्राता समरकेतु के साथ निश्चित किया गया है। मित्रों आदि को निमन्त्रित किया जा चुका है तथा विवाह सम्बन्धी अन्य सभी कार्यों को कर लिया गया है। अतः आप समरकेतु को शीघ्रता पूर्वक सुवेल पर्वत भेज दें। हरिवाहन ने आश्चर्यचकित होकर कल्याणक से पूछा कि अन्य द्वीपा वासी विचित्रवीर्य को समरकेतु के आगमन का ज्ञान कैसे हुआ। कल्याणक ने