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________________ 60 तिलकमञ्जरी का कथासार पर चली गई। वहाँ उन्होंने जिनायतन का निर्माण किया और पति के आगमन की प्रतीक्षा करने लगी। एक दिन अदृष्टपार सरोवर के तट पर बैठे हुए प्रियङ्गसुन्दरी ने देवी लक्ष्मी को दक्षिण दिशा से आते हुए देखा। देवी लक्ष्मी ने उसे बताया कि मैं आज प्रातः ही तुम्हारी सखी प्रियंवदा से मिली थी। उसने तुम्हारे लिए सन्देश दिया है कि बहुत समय प्रतीक्षा करने पर भी प्रिय से समागम नहीं हुआ। अब मेरी आयु समाप्तप्रायः है। मेरे पश्चात् मन्दिर की रक्षा करना। प्रियंवदा के आयतन की रक्षा कौन करेगा तथा मेरी मृत्यु के पश्चात् इस मन्दिर की रक्षा कौन करेगा। प्रियङ्गसुन्दरी के इस चिन्ता से दु:खी होने पर लक्ष्मी ने अपने महोदर नामक सेवक को बुलाकर मन्दिरों का दायित्व उसे सौंप दिया और विदा लेकर चली गई। ___ जन्मान्तर में वहीं प्रियङ्गसुन्दरी तिलकमञ्जरी के रूप में विद्यारेन्द्र चक्रसेन की पुत्री बनी। अतिशय सौन्दर्य और गुणों से युक्त होने पर भी पूर्व जन्म के संस्कारों के कारण, अन्य पुरुषों में प्रीति नहीं रखती। यह वृत्तान्त सुनकर पार्श्ववर्ती सुरासुर व नभश्चर आश्चर्यचकित हो गए। ज्वलनप्रभ के विषय में पूछने पर महर्षि ने बताया कि ज्वनलप्रभ भी स्वर्ग से निकलकर राजा मेघवाहन को प्रियङ्गसुन्दरी का चन्द्रातप नामक हार देकर नन्दीश्वर द्वीप गया। वहाँ उसने भोगों में आसक्त अपने मित्र सुमाली को जिनमतानुसार जीव, आत्मा व परमात्मा आदि के प्रभेदों का ज्ञान देकर धर्म के कार्यों में प्रवृत्त किया। दिव्य आयु समाप्त होने पर उसने अयोध्या नरेश सम्राट् मेघवाहन के घर में जन्म लिया। सुमाली ने भी दिव्य आयु समाप्त होने पर सिंहलेन्द्र चन्द्रकेतु के घर जन्म लिया। इस जन्म में उसका नाम समरकेतु है। इस सम्पूर्ण वृत्तान्त को सुनकर मलयसुन्दरी ने तिलकमञ्जरी से पूछा कि अब क्या करना है?तिलकमञ्जरी ने कहा - हे सखि! मैं भी नहीं जानती, क्या कहूँ। मेरा मन व्याकुल हो रहा है और अशुभ सूचक दायी आँख भी फड़क रही है। न जाने क्या होने वाला है। तभी चित्रमाय ने आकर सूचना दी कि एकशंग पर्वत पर गए हुए हरिवाहन नहीं मिले। मैं उन्हें ढूढ़ने के लिए विद्याधरों को लगाकर यहाँ आया हूँ। यह सुनकर तिलकमञ्जरी का मुख मलीन हो गया। तिलकमञ्जरी को सान्त्वना देते हुए मलयसुन्दरी उसे विमान में साथ लेकर आपको खोजने चल पड़ी। दिन भर खोजने के पश्चात् निराश होकर आयतन में आ गयी। अगले दिन संदीपन नामक विद्याधर ने आकर सूचना दी कि लोगों से
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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