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________________ तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य नहीं आता कि आपकी कुशलता के समाचार को किस माध्यम से प्रेषित किया जाए?तभी एक शुक ने आकर मनुष्य की वाणी में कहा – 'आप दु:खी न हों और जो कार्य करना हो, वह मुझे बताएँ।' मैंने एक पत्र लिखकर उसे अपने सेनापति के पास पहुँचाने के लिए दे दिया, जिसे वह चोंच में दबाकर चला गया। धीरे-धीरे संध्या समय हो गया। उसी समय चतुरिका ने आकर मलयसुन्दरी को बताया कि अस्वस्थ तिलकमञ्जरी ने आपको बुलाने के लिए चारायण नामक कञ्चुकी को भेजा है। जब मलयसुन्दरी ने तिलकमञ्जरी की अस्वस्थता का कारण पूछा तो उसने बताया कि कल प्रात:काल में तिलकमञ्जरी अदृष्टपार सरोवर के तटवर्ती वन में पुष्पवाचयन कर रही थी, तभी नीचे की ओर मुख किए हुए एक हाथी भीषण गर्जना करते हुए आकाश से इस सरोवर में आकर गिरा। यह देखकर तिलकमञ्जरी व पार्श्ववर्ती परिचारिकाएँ उर कर इधर-उधर छिप गई। कुछ देर बाद तिलकमञ्जरी लज्जा से अवनतमुखी होकर इलायची लतामण्डप से निकली और तमाल वृक्षों के झुण्ड के नीचे जाकर रुक गई। उसकी इस दशा को देखकर मुझे लगा कि अवश्य ही इलाइची लतामण्डप में गए हुए किसी अतिशय रूप लावण्य से युक्त दिव्य पुरुष के दर्शनों से ही इसकी यह दशा हुई है। उसी समय से वह अस्वस्थ हैं। यह सुनकर मलयसुन्दरी ने कहा - तुम जाकर तिलकमञ्जरी से कहो कि सकल भारतवर्ष के सम्राट मेघवाहन के पुत्र हरिवाहन मेरे निवास स्थान पर आए हैं तथा मैं आदरणीय अतिथि को छोड़कर आने में असमर्थ हूँ। यह सन्देश लेकर चतुरिका चली गई। अगले दिन नित्यकर्मों से निवृत्त होकर मैं मलयसुन्दरी के पास बैठा ही था कि चतुरिका ने आकर धीमे से मुझे बताया कि आज प्रात:काल में ही तिलकमञ्जरी यहाँ आएगी। कुछ समय पश्चात् तिलकमञ्जरी वहाँ आ गई और मुझे प्रेमपूर्वक देखती हई मलयसुन्दरी के पास बैठ गयी। मलयसुन्दरी ने उससे मेरा परिचय कराया, तो स्नेह पूरित दृष्टि से देखते हुए उसने मुझे अपने हाथों से पान दिया। कुछ समय आयतन मण्डप में घूमकर तिलकमञ्जरी अपने आवास की ओर चल पड़ी। उसके कुछ दूर जाने पर ही उसकी द्वारपाली मन्दुरा ने तिलकमञ्जरी की ओर से मुझे व मलयसुन्दरी को रथनूपुरचक्रवाल नगर चलने का निमन्त्रण दिया। मुनिजनोचित परिचर्या धारण करने के कारण मलयसुन्दरी ने वहाँ जाने के लिए मना कर दिया। परन्तु तिलकमञ्जरी की प्रिय सखी मृगाङ्कलेखा ने उसको प्रेमपूर्वक हाथ से खींचते हुए विमान में लाकर बिठा दिया। तदनन्तर हम सब विमान में आरूढ़ होकर नगर की शोभा देखते हुए विद्याधराधिपति की राजधानी रथनूपुरचक्रवाल नगर पहुंचे।
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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