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तिलकमञ्जरी का कथासार काष्ठमय भवन से उतर आई। इस दिव्य सरोवर में स्नान करके मैंने देवार्चना की और तट के समीप एक वृक्ष के नीचे बैठ गयी। उसी समय दो तीन परिचारिकाओं के साथ चित्रलेखा फूल चुनने के लिए वहाँ आई। उसने मुझे पहचान कर गले लगा लिया। कुछ समय पश्चात् विद्याधरों के चक्रवर्ती सम्राट् चक्रसेन की महारानी पत्रलेखा ने वहाँ आकर पूछा कि यह काष्ठ भवन किसका हैं। तब मुक्तावली नामक पालिका ने उसमें पड़े वस्त्रों व आभूषणों को देखकर बताया कि यह सुवेल पर्वत पर गए हुए गन्धर्वक का विमान है। यह सुनकर महारानी ने खेद सहित कहा कि न जाने गन्धर्वक का क्या हुआ?इसके पश्चात् महारानी ने चित्रलेखा से मेरे विषय में पूछा, तो उसने कहा कि यह तो आप जानती है कि आपकी छोटी बहिन गन्धर्वदत्ता जब दस वर्ष की थी तब वैताद्य पर्वत निवासी आपके नाना उसकी नृत्य में रुचि होने के कारण, उसे अपनी नगरी वैजयन्ती ले गए थे। उस समय जितशत्रु नामक शत्रु सामन्त ने नगरी में बहुत उत्पात मचाया और सभी लोगों को भयभीत कर दिया। उस समय समरकेली नामक अन्तःपुर का रक्षक गन्धर्वदत्ता को उसके पिता के पास पहुँचाने के लिए उसे लेकर आकाश में उड़ गया। परन्तु घायल होने के कारण अतिकृश होकर प्रशान्त वैर नामक तपस्वी के आश्रम में पहुँचा। वहाँ गन्धर्वदत्ता को कुलपति को सौंपकर वह दीर्घनिद्रा में लीन हो गया। उस कुलपति ने उसे पुत्री के समान पाला और काञ्ची नरेश कुसुमशेखर से उसका विवाह कर दिया। यह मलयसुन्दरी उन्हीं की पुत्री है। भगवान महावीर के अभिषेकोत्सव के अवसर पर मैंने इसे नृत्य करते हुए देखा था। यह सुनकर पत्रलेखा ने स्नेह पूर्वक मुझे अपने निवास पर चलने को कहा, पर मैंने मुनि व्रत का पालन करने के लिए यहीं रहने की इच्छा प्रकट की। यह सुनकर उन्होंने इस त्रिभूमिका मठ की रम्यतर मध्यभूमिका मुझे रहने के लिए प्रदान कर दी और मेरी परिचर्या के लिए चतुरिका नामक परिचारिका को छोड़कर उसी विमान में बैठकर चली गई। उसी समय से मैं प्रिय दर्शन की आशा में यही समय बिता रही हूँ। यह कहकर वह चुप हो गई।
(यहाँ मलयसुन्दरी द्वारा वर्णित वृत्तान्त समाप्त होता है।)
उसका वृत्तान्त सुनकर मैंने मलयसुन्दरी को तुम्हारी कुशलता के विषय में आश्वस्त किया और वज्रायुध से युद्ध के बाद का सारा वृत्तान्त सुना दिया। तुम्हारी कुशलता के समाचार को सुनकर वह बहुत प्रसन्न हुई और बोली कि दुष्ट गज के द्वारा आपके अपहरण के बाद से न जाने समरकेतु की कैसी दशा होगी। समझ