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________________ 52 तिलकमञ्जरी का कथासार पड़ी। आँख खुलने पर मैंने स्वयं को अपने भवन के शयन कक्ष में पाया। अपनी प्रिय सखी बन्धुसुन्दरी को मैंने सारा वृत्तान्त बता दिया। तत्पश्चात् बन्धुसुन्दरी के साथ उसी विषय में बातें करते हुए दिन बिताने लगी। एक बार वसन्त समय में जब बन्धुसुन्दरी मेरी विरह वेदना को कम करने के लिए प्रिय समागम की आश्चर्यचकित करने वाली कथाओं से मेरा मनोरंजन कर रही थी, उसी समय कात्यायनिका नामक परचिारिका ने आकर मेरी माता का संदेश दिया कि आज मदन त्रयोदशी है और आपको कामदेव के मन्दिर में पूजार्थ जाना है। कल अयोध्या के सेनापति वज्रायुध से आपका विवाह होगा। युद्ध के उपशमनार्थ केवल यही एक उपाय है। यह सुनकर अत्यधिक दुःखी होकर मैंने आत्महत्या का निश्चय कर लिया और परिचारिका को कहा कि माता से कहना मैं सांयकाल में चली जाऊँगी। तत्पश्चात मैं स्नानादि करके माता-पिता से मिलकर गृहोद्यान में गई। वहाँ प्रिय वृक्षों, पक्षियों, कलहंसों से विदा सम्बन्धी वचनों को कहती हुई अपने भवन में गई और बन्धुसुन्दरी को भी अपने घर भेज दिया। तत्पश्चात् मैं उसी कामदेव मन्दिर में पहुँची, जिसमें माता ने पूजा करने का आदेश दिया था। कामदेव के मन्दिर में द्वार देश से ही कामदेव को प्रणाम किया और आत्महत्या करने के लिए अपने आवरण वस्त्र से मृत्यु पाश बनाया। तदनन्तर 'अगले जनम में उसी राजकुमार से संगम हो' यह कहकर गले में मृत्यु पाश को बांधकर उस कामदेव के मन्दिर के उद्यान के अशोक वृक्ष की शाखा से झूल गई। उसी समय मैंने अपने पीछे आती हुई व मेरी दशा को देखकर विलाप करती हुई बन्धुसुन्दरी को देखा। वह मेरे जीवन को बचाने के लिए सहायतार्थ मन्दिर में ठहरे एक राजकुमार को बुला लाई, जिसने मेरे मृत्यु पाश को काटकर मुझे बचा लिया। मैं यह देखकर बहुत आनन्दित हुई कि यह वही राजकुमार है, जिसका मैंने पतिरूप में वरण किया था। मैंने बन्धुसुन्दरी को उसका परिचय दिया। परिचय जानकर वह आश्चर्यचकित हो गयी और मेरा हाथ उसके हाथ में देकर बोली - 'अब मैं कृतार्थ हो गई और मेरी सारी चिन्ताएं भी दूर हो गई।' मैंने राजकुमार से पूछा कि पाताल के समान गहन उस समुद्र से आपको किसने बचाया। उसने उत्तर दिया कि मैंने किसी की आवाज तो सुनी थी, पर मैं उस दिव्य आत्मा को देख नहीं पाया, जिसने मुझे डूबने से बचाया। बाद में तारक ने तुम्हारे वचनों को याद दिलाकर तुम्हें खोजने के लिए काञ्ची चलने को कहा। उसी समय एक 7. किं च चिन्त्यते कोऽपि तदवाप्त्युपायः किं च काञ्चीनगरगमनाय गृह्यतेऽद्यापि नोद्यमः। किं विस्मृतं तद्युवराजस्य यत्तदा समुद्रोदरे छद्मना त्वदर्थ कृतप्रार्थनस्यविज्ञाय मे..। ति.म., पृ., 320
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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