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तिलकमञ्जरी का कथासार
चित्रमाय नामक विद्याधर समय-समय पर तुम्हारी सहायता करेगा। यह कहकर गन्धर्वक ने कहा कि अब आप मुझे आवश्यक राजकार्यवश जाने के लिए अनुमति दें। मार्ग में कोई विघ्न न होने पर लौटते समय यहाँ आकर आपका चित्र बनाऊँगा, जो अवश्य ही राजकुमारी तिलकमञ्जरी के पुरुष विद्वेष को शान्त कर देगा। यह कहकर जाने को उत्सुक गन्धर्वक को हरिवाहन ने समरकेतु का लिखा हुआ एक पत्र दिया और कहा कि यह पत्र काञ्ची नरेश की पुत्री मलयसुन्दरी को आदरपूर्वक दे देना।
तिलकमञ्जरी के चित्र दर्शन से ही हरिवाहन काम विकार से पीड़ित हो गया और गन्धर्वक के जाने के पश्चात् सदा तिलकमञ्जरी के विषय में चिन्तन करते हुए, गन्धर्वक के आगमन की प्रतीक्षा में समय बिताने लगा। प्रतीक्षा करते हुए ग्रीष्म व वर्षा ऋतु बीत गई और शरद् ऋतु आ गई। पर गन्धर्वक नहीं आया। धीरे-धीरे गन्धर्वक के वापस आने की आशा क्षीण होती गई तिलकमञ्जरी के चित्र-दर्शन से जनित वेदना को कम करने के लिए हरिवाहन ने राज्य भ्रमण का निश्चय किया और पिता की आज्ञा प्राप्त कर समरकेतु व अन्य मित्रों के साथ निकल पड़ा। इधर-उधर भ्रमण करते हुए वे कामरूप नामक देश में पहुँचे। वहाँ के राजा के द्वारा प्रीतिपूर्वक रोक लिए जाने पर वहीं पर अपना शिविर बना लिया। हरिवाहन के विषय में जानकर उत्तरापथ के राजा श्रेष्ठ उपहारों के साथ उससे मिलने आने लगे।
___ एक दिन हरिवाहन अपने मित्रों और भृत्यों के साथ लौहित्य नदी के मृगवन में गया। वहां के मनोरम वातावरण में वे वीणावादन का आनन्द उठाने लगे, तभी पुष्कर नामक मुख्य महावत ने आकर बताया कि वैरियमदण्ड नामक प्रधान हाथी उन्मत्त हो गया है और किसी के भी वश में नहीं आ रहा है। यह सुनकर हरिवाहन समरकेतु आदि के साथ वहाँ गया। वहाँ हरिवाहन ने वीणा के मधुर स्वरों को फैलाना आरम्भ किया, जिसको सुनकर वह हाथी उग्र रूप को छोड़कर आनन्दित होकर, आनन्दाश्रु बहाने लगा। उसकी इस अवस्था को देखकर और यह वश में हो गया ऐसा समझकर हरिवाहन उस पर आरूढ़ हो गया। उसके पीठ पर बैठते ही वह हाथी द्रुत गति से वहाँ से दौड़ पड़ा और शीघ्र ही सभी की आँखों से ओझल हो गया। समरकेतु ने अन्य राजपुत्रों और सैनिकों के साथ उसको ढूँढ़ने का हर सम्भव प्रयास किया, परन्तु असफल रहे। तीसरे दिन कुछ महावतों ने आकर अत्यन्त दु:खपूर्वक राजकुमार समरकेतु को बताया कि वह दुष्ट हाथी तो मिल