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________________ तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य 45 एकमात्र दोष है। यह सुनकर बालक ने कहा कि चित्र में चित्रित कन्या पुरुषों से विद्वेष रखती है, इसी तथ्य को प्रकट करने के लिए मैंने पुरुष रहित चित्र बनाया है। अभी किसी कार्यवश मुझे शीघ्रता है, इसलिए इसका कारण मैं संक्षेप में कहता हूँ सुनिए - वैताढ्य पर्वत पर समस्त भारत वर्ष के विलास स्थान के समान रथनूपुरचक्रवाल नामक विद्याधरों का नगर है। वहाँ पर अत्यन्त बुद्धिमान, बलशाली व नीतिनिपुण चक्रवर्ती सम्राट् चक्रसेन राज्य करते हैं। जिनकी महान विद्याधर वंशोत्पन्न महारानी पत्रलेखा ने सौन्दर्य में तीनों लोकों में उत्कृष्ट, तिलकमञ्जरी नामक कन्या को जन्म दिया। यह चित्र उसी विद्याधर कन्या का है। नम्रता, शीलता, सौन्दर्य व लज्जा आदि स्त्रीजनोचित गुणों से युक्त यह राजकुमारी स्वप्न में भी पुरुष सम्पर्क की इच्छा नहीं करती। पिता आदि गुरुजनों के द्वारा बहुत प्रकार से समझाए जाने पर भी यह विवाह नहीं करना चाहती। तिलकमञ्जरी की इस मनोवृत्ति से दुःखी महारानी पत्रलेखा के स्वप्न में आकर विद्याधरों की देवी ने कहा- हे पुत्र ! विषाद मत करो। समस्त राजाओं में उत्कृष्ट भूमिवासी सम्राट् का पुत्र ही तिलकमञ्जरी का पति होगा। तुम्हारे पुण्यों के प्रभाव से ही देवी लक्ष्मी की सखी तुम्हें पुत्री रत्न के रूप में प्राप्त हुई है। इस स्वप्न को देखकर पत्रलेखा ने अपनी सखी व मेरी माता चित्रलेखा को बुलाकर कहा- ‘“सखि! तुम चित्रकला में प्रवीण हो और तिलकमञ्जरी चित्रदर्शनानुरागिनी है। तुम भूतलवर्ती सुन्दर राजकुमारों के चित्र बनाकर चित्रकौशल दर्शन के व्याज से उसे दिखाओं तथा उनके पराक्रम आदि का खूब वर्णन करो। ऐसा करने से सम्भवतः तिलकमञ्जरी किसी राजकुमार को पसन्द कर ले।" यह सुनकर चित्रलेखा ने भूतलवर्ती राजकुमारों के चित्र बनाने के लिए चित्रकला में निपुण दूतियों को सभी दिशाओं में भेज दिया और मुझे कहा कि पुत्र गन्धर्वक, तुम्हें भी यही कार्य करना है। परन्तु आज देवी पत्रलेखा किसी कार्यवश तुम्हे अपने पिता विद्याधरेन्द्र विचित्रवीर्य के पास भेज रही हैं। उनका कार्य करने के पश्चात् विद्याधरेन्द्र को मेरे ये वचन कहना कि काञ्चीनरेश कुसुमशेखर की महारानी गन्धर्वदत्ता उनकी ही पुत्री है । गन्धर्वदत्ता ने एकान्त में वैजयन्ती नगर की दुर्घटना के विषय में ठीक-ठीक बता दिया था। अतः आप गन्धर्वदत्ता के विषय में संदेह न करें। यह सूचना देकर तुम्हें काञ्चीनगर जाकर कुछ समय देवी गन्धर्वदत्ता की सेवा करनी है और शीघ्र ही यहाँ लौटना है। अनेक विद्याओं में निपुण यह
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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