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________________ तिलकमञ्जरी का कथासार सुनाई दी। उस ध्वनि को सुनकर मैंने तारक को उसके उत्पत्ति स्थल की ओर प्रयाण करने के आदेश दिया। पाँच-छः नाविकों को साथ लेकर बहुत दूर निकल आने पर अचानक वह ध्वनि सुनाई देनी बंद हो गई। तारक ने जलयान रोक कर मुझसे पूछा - " हे युवराज ! हमारी मार्ग निर्देशक ध्वनि बन्द हो गई है। अब क्या करना है? यहीं से वापस लौटना है अथवा आगे जाना है?" अभिलषित आनन्द की आशा खण्डित होने से मैं दुःखी हो गया और अवनत मस्तक होकर इस ऊहापोह में पड़ गया कि इसे आगे चलने को कहुँ या वापस चलने को । इसी चिन्तन में रात्रि बीत गई और लालिमा लिए सूर्य की किरणें धरती पर उतर आई। उसी समय मैंने पर्वत के पास ही अत्यन्त आश्चर्यजनक प्रकाशपुंज में से आकाशमार्ग से उतरते हुए, विद्याधर समूह को निकलते हुए देखा। मैंने तुरन्त तारक को आगे चलने को कहा और शीघ्र ही पास जाकर हमने एक दिव्य मन्दिर को देखा। उस दिव्य मन्दिर को देखकर मैंने अपने जीवन को सार्थक माना और उसमें पूजा करने का विचार किया, परन्तु मन्दिर के प्रवेश द्वार को न पाकर वहीं रुक गया। उसी समय हमें नूपुरों की झङ्कार सुनाई दी और मन्दिर की दीवार पर अनेक कन्याओं के मध्य एक षोडषवर्षीय अत्यन्त सुन्दर कन्या दिखाई दी। ( यहाँ प्रतिहारी के प्रवेश करने से समरकेतु की कथा रुक जाती है ) प्रतिहारी प्रवेश करके तथा हरिवाहन के समीप जाकर निवेदन करती है कि नेत्रों के लिए अमृत तुल्य इस चित्र को आप एक क्षण देख लें। यह सुनकर हरिवाहन ने कामदेव की जय घोषणा के समान अत्यन्त रूपवती नवतरुणी के उस चित्र को देखा। उस में चित्रित तरुणी के सौन्दर्य से मुग्ध होकर हरिवाहन पुनः पुनः उस चित्र को देखने लगा। चित्र की प्राप्ति के विषय में पूछने पर प्रतिहारी ने बताया कि मैंने उद्यान की शोभा को देखते हुए माधवी लतामण्डप में कमलिनी समूह की शय्या पर सोये हुए अतिसुन्दर पन्द्रह वर्षीय बालक को देखा। उसके पूछने पर जब मैंने उसे आपका परिचय दिया, तो प्रसन्न होकर उसने आपको दिखाने के लिए मुझे यह चित्र देकर कहा कि मैं भी आपके पीछे-पीछे आ रहा हूँ। प्रतीहारी के इतना कहते ही वह बालक भी वहाँ आ गया। उसने हरिवाहन को नमस्कार करके कहा- " हे कुमार ! मैं चित्रकला में अप्रौढ़ हूँ, यदि आपको इस चित्र में कहीं कोई दोष दिखाई दे रहा हो तो कृपया मुझे बताएँ । " हरिवाहन ने कहा कि हर प्रकार से उत्कृष्ट इस चित्र में किसी पुरुष का चित्रण नहीं है, यही 44
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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