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________________ तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य 43 परेशानी के कारण को जानने का प्रयास किया, परन्तु सफल नहीं हुआ। जब हरिवाहन ने प्रेमपूर्वक उसकी व्याकुलता के विषय में पूछा, तब समरकेतु ने अपने अश्रुओं को पोंछकर कहा समरकेतु का वृत्तान्त सिंहलद्वीप पर रंगशाला नामक नगरी हैं। वहाँ पर मेरे पिता चन्द्रकेतु राज्य करते हैं। एक बार उन्होंने सुवेल पर्वत के समीपवर्ती दुष्ट सामन्तों को दण्ड देने के लिए मुझे नौ सेना का नायक बनाकर, मुख्य राजाओं और मन्त्रियों के साथ दक्षिणापथ भेजा। मैं अमरवल्लभ नामक गन्धगज पर आरूढ़ होकर अपनी सेना के साथ प्रस्थानमन्त्र की ध्वनि से मुखरित नगर सीमा से निकलकर, विष और अमृत के उत्पत्ति स्थान, अति गम्भीर समुद्र के तट पर पहुँचा । प्रतिहारियों के द्वारा समुद्र यात्रा के लिए जलयानों की व्यवस्था को देखते हुए, दो-तीन दिन वहीं पर सेना सहित निवास किया। वहाँ पर मैंने अत्यन्त उज्जवल और मनोहारी आकृति वाले पच्चीस वर्षीय नाविक युवक को देखकर नौ सेना अध्यक्ष से उसके विषय में पूछा। उसने बताया कि यह स्वर्णद्वीप की मणिपुर नामक नगरी में प्रतिष्ठा प्राप्त वैश्रवण नामक पोत-वणिक् का पुत्र तारक है। यह अपने साथियों के साथ व्यापार के लिए इस रंगशाला नगरी में आया था । यहाँ नाविकों के सरदार जलकेतु की पुत्री प्रियदर्शना को देखकर काम विकार से पीड़ित हो गया और उससे विवाह करके यहीं रह गया। सम्राट् चन्द्रकेतु ने इसके गुणों को जानकर, इसे समस्त नाविकों को नायक बना दिया। सभी प्रकार से योग्य इस नवयुवक की सहायता से आप इस विस्तृत समुद्र को अनायास ही पार कर लेंगे। - उसी समय उस नाविकों के नायक ने आकर मुझे प्रणाम किया और बताया कि यात्रा की तैयारियाँ पूर्ण हो गई हैं। मैं सेना सहित जलयानों में सवार हो गया । दुष्ट सामन्तों को अपने अधीन करते हुए हम सुवेल पर्वत पहुँचे । निरन्तर युद्धों से थकी हुई सेना के साथ मैंने उस रमणीय व मनोहर पर्वत की शोभा देखते हुए वहीं पर कुछ दिन बिताए । एक दिन दुर्गम दुर्ग व सेना के गर्व से मत्त भीलराज को बंदी बनाकर लाते हुए, अत्रि नामक भट्टपुत्र ने सेनाध्यक्ष की ओर से निवेदन किया कि यदि आपकी आज्ञा हो तो पञ्चशैल द्वीप के इस रमणीय पर्वत पर विश्राम कर लिया जाये। मैंने अनुमति प्रदान कर दी । वहाँ विश्राम करते हुए अचानक ही रात्रि के अन्तिम प्रहर में उस पर्वत की पश्चिमोत्तर दिशा से दिव्य मंगल गान की ध्वनि
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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