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________________ तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य रथ के मध्य में ही गिर पड़ा। इसी समय हमारी सेना के सैनिक 'चलो, पकड़ों, मारो' आदि कहते हुए दौड़ने लगे। इस पर वज्रायुध ने 'उसे कौशल नरेश सम्राट मेघवाहन की कसम है जो इस पर क्रोध करेगा' ऐसा कहकर उन्हें रोका।उस राजकुमार के शौर्य से प्रभावित होकर वज्रायुध ने उसकी चामरग्राहिणी से राजकुमार का परिचय पूछा। उसने दुःख से पूर्ण मुख से अश्रुओं को पोंछ कर कहा - "हे महाभाग! ये सिंहलद्वीप के राजा चन्द्रकेतु के पुत्र समरकेतु हैं। इन्होंने अपने पराक्रम के कारण बाल्यावस्था में ही युवराज पद प्राप्त कर लिया था। पिता की आज्ञा से काञ्ची नरेश की सहायता करने के लिए कुछ राजाओं के साथ पाँच-छ: दिन पहले ही यहाँ आए थे। आज प्रातः काल में कुछ मित्रों के साथ किसी निमित्त से शृंगार वेश धारण करके कामदेव के मन्दिर गए थे और वहीं पर नगर की नारियों को देखते हुए पूरा दिन बिता दिया। कामदेव के मन्दिर में यात्रोत्सव समाप्त हो जाने पर, सभी मित्रों को वापस भेजकर रात्रि में वही कमल के पत्तों की शय्या पर सो गए। रात्रि के मध्य में अचानक ही शिविर में आकर युद्ध के लिए सेना को सज्जित किया। किसी के रोकने पर भी नही माने और काञ्ची से निकलकर इस दशा को प्राप्त हुए।" धीरे-धीरे प्रातः काल हो गया और शत्रु सेना जागने लगी। राजकुमार ने भी निद्रा का त्याग किया परन्तु अपनी अवस्था को देखकर दु:ख और लज्जा से पुनः मूर्छित हो गया। वज्रायुध ने अभय सूचक पटह बजवा दिया और समरकेतु को प्रेमपूर्वक अपने आवास पर ले आए। वहाँ स्वयं ही समरकेतु के व्रणों की पट्टी इत्यादि की। उसके स्वस्थ होने पर वज्रायुध ने उसके पराक्रम की प्रशंसा करते हुए कहा कि कोई भी आपसे जीत पाने में समर्थ नहीं हैं, आपकी पराजय का कारण मैं नहीं अपितु यह दिव्य अंगूठी है। यह कहकर वज्रायुध ने राजकुमार को वह अंगूठी दिखाई और उसकी प्राप्ति का समस्त वृत्तान्त भी सुनाया। इसके पश्चात् वज्रायुध ने कहा कि अब यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कौशल नरेश की सेना के अध्यक्ष पद को स्वीकार करें। सारा वृत्तान्त सुनकर समरकेतु का कुछ संताप दूर हो गया और वह आपके दर्शनों के लिए उत्सुक हो उठा। सेनापति ने प्रसन्न होकर राजकुमार को मेरे साथ आपके दर्शनार्थ भेज दिया। वज्रायुध और समरकेतु के इस वृतान्त को सुनकर सभा में उपस्थित सभी राजगण आश्चर्यचकित हो गए। सम्राट मेघवाहन ने हरदास नामक प्रधान प्रतिहारी को भेजकर आदरपूर्वक समरकेतु को बुलवा लिया। समरकेतु के आने पर सम्राट ने उसे प्रेमपूर्वक अपने पास बुलाकर पुत्रवत् अपने अंक में ले लिया। तदनन्तर बेंत
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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