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तिलकमञ्जरी का कथासार
वर्ष पूरे होने पर छठे वर्ष में सम्राट मेघवाहन ने राजभवन में विद्याभवन का निर्माण करवाया और शिक्षा मर्मज्ञ व अनुभवी विद्वान् गुरुओं को बुलाकर शुभ मुहूर्त में हरिवाहन का उपनयन संस्कार करवा दिया।
राजकुमार हरिवाहन ने अपनी कुशाग्र बुद्धि और असाधारण प्रतिभा के कारण दस वर्षों में ही सभी विद्याओं में प्रवीणता प्राप्त कर ली। उसने चित्रकला व वीणा-वादन में विशेष कुशलता प्राप्त कर ली थी। हरिवाहन के सभी कलाओं में पारङ्गत होने पर सम्राट ने नगर की बाह्य भूमि पर उसके लिए एक भवन बनवा दिया और हरिवाहन को युवराज बनाने की इच्छा से उसके सहायक राजकुमार की खोज में अनुचरों को लगा दिया।
एक दिन सम्राट मेघवाहन सभागृह में बैठे हुए थे, तभी प्रतिहारी ने आकर विनयपूर्वक सम्राट को सूचना दी कि दक्षिणापथ से सेनापति वज्रायुध का प्रियपात्र विजयवेग उनके दर्शनों का अभिलाषी है। सम्राट ने उसे तुरन्त बुला लिया और वज्रायुध और सेना का कुशलक्षेम पूछा। इसके पश्चात् अंगूठी के विषय में पूछा कि अंगूठी ने युद्ध में कुछ उपकार किया अथवा नहीं?
एवजयवेग ने कहा कि उस अंगूठी ने वह उपकार किया है, जो कोई और नहीं कर सकता। एक वर्ष पहले शरद् ऋतु के आरम्भ होने पर काञ्चीनरेश कुसुमशेखर का दमन करने के लिए सेनापति वज्रायुध सेना सहित कुण्डिन पुर से काञ्ची देश पहुँचे। काञ्ची नरेश ने पूर्ण तैयारी कर ली थी और सहायता के लिए मित्र राजाओं के पास दूत भेज दिए थे। दोनों सेनाओं में बहुत दिनों तक युद्ध होता रहा। एक दिन वसन्त ऋतु के आने पर, कामदेव के उत्सव में मग्न होने पर रात्रि के द्वितीय प्रहर में तीव्र कोलाहल ध्वनि सुनाई पड़ी। उसी समय काचरक और काण्डरात नामक अश्वारोहियों ने आकर सूचना दी कि शत्रु सेना वेगपूर्वक निकट आ रही है। सेनापति ने हर्षित होकर दुन्दुभि बजाने का आदेश दे दिया। दोनों सेनाओं में भयंकर युद्ध होने लगा। अचानक शत्रुसेना में से एक तेजस्वी राजकुमार वज्रायुध का नाम लेकर उसे युद्ध के लिए ललकारने लगा। दोनों में धनुर्युद्ध होने लगा। वज्रायुध को युद्ध में पराजित होता देख, मैं वज्रायुध की प्राणरक्षा के उपाय को खोजने लगा। तभी मुझे बालारुण नामक अंगूठी का ध्यान आया और मैंने वह अंगूठी वज्रायुध की अंगुली में डाल दी। उस अंगूठी को पहनते ही सेनापति अपराजेय हो गए। अंगूठी के अत्यधिक तेज से शत्रु सेना सूर्य की किरणों के स्पर्श से कुमुद वन के समान निद्रा में लीन हो गई। वह राजकुमार भी निद्रा के वेग से