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तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य यह मेरा सेवक महोदर नामक यक्ष है। तुम्हारे पराक्रम की परीक्षा के लिए ही इसने इस मायाजाल की रचना की थी। अतः तुम खेद न करों और अपना मनोरथ बताओ। राजा ने श्रद्धा भाव से पूरित होकर देवी की पूजा की तथा पुत्र प्राप्ति रूप वर की याचना की। देवी लक्ष्मी ने सम्राट की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे वर प्रदान किया और बालारुण नामक अंगूठी भी प्रदान की और कहा कि यह चन्द्रातप नामक हार भी अपने पास ही रखो। जब तुम्हारा पुत्र युवा हो जाए तो उसे पहनाना। इस प्रकार वर प्रदान करके देवी अन्तर्ध्यान हो गई। उस अंगूठी में यह विशेषता थी कि उसे धारण करने वाला हर प्रकार के संकट से मुक्ति पा लेता था।
अगले दिन सम्राट ने नित्य कर्मों से निवृत्त होकर, सभा में जाकर, मंत्रियों, गुरुजनों, मित्रों व नागरिकों को सम्पूर्ण वृत्तान्त सुनाया। वृत्तान्त सुनकर सभी लोग हर्षित हुए। सम्राट ने अपने प्रधान कोषाध्यक्ष महोदधि को बुलाकर हार को प्रमुख रत्नों के मध्य रखने के लिए दे दिया। अंगूठी को दुष्ट सामन्तों के दमनार्थ दक्षिणापथ गए हुए अपने सेनापति वज्रायुध के पास भिजवा दिया और उपसेनापति विजयवेग के लिए संदेश भी भिजवाया कि रात्रि-युद्धों में बलशाली शत्रु के द्वारा निरुद्ध होने पर यह अंगूठी सेनापति को अवश्य पहना दी जाए। इसके पश्चात् सम्राट ने शक्रावतार मन्दिर में जाकर पूजा की और बाद में अन्य मन्दिरों में जाकर अर्चना की।
सन्ध्या के समय सम्राट् सन्ध्योपासनादि विधि से निवृत्त होकर सुन्दर वेष धारण करके सभागृह में गए। कुछ देर वहाँ पर ठहर कर अन्तःपुर में महारानी मदिरावती के पास गए। वहाँ उन्होंने पति के दर्शनाभाव से दु:खी और व्रतपालन के कारण कृश व अनलङ्कृत मदिरावती का अपने हाथों से शृङ्गार किया और सम्पूर्ण घटनाक्रम उसे सुनाया। तदनन्तर वे वहीं पर मदिरावती के साथ सो गए।
प्रभात होने से कुछ समय पहले ही सम्राट ने स्वप्न में देखा कि शुभ्रवस्त्रों से शोभित मदिरावती कैलाश पर्वत के उन्नत शिखर पर विराजमान हैं तथा इन्द्र का वाहन ऐरावत हाथी आकाश से उतरकर उसके स्तनों से ऐसे दुग्ध-पान कर रहा है, जैसे गणेश जी माता पार्वती का स्तन-पान करते थे। निद्रा त्यागने पर सम्राट महारानी को भी अपने स्वप्न के विषय में बताते हैं। कुछ दिनों के पश्चात् ही महारानी मदिरावती गर्भ धारण करती है और समय पूरा होने पर शुभ मुहूर्त में एक तेजस्वी पुत्र का जन्म देती है। सम्राट् स्वप्न में देवराज इन्द्र के हाथी ऐरावत के दर्शन होने के कारण उस बालक का नाम हरिवाहन रखते हैं। हरिवाहन के पाँच