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धनपाल : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
2. तिलकमञ्जरी: यह एक प्रेम कथा है। इसमें हरिवाहन और तिलकमञ्जरी की प्रणय कथा का वर्णन है। यह पुनर्जन्म के तानों बानों पर बुनी गयी एक सुन्दर प्रेम कथा है। इस एक कृति से ही धनपाल ने संस्कृत गद्य लेखकों में अपना विशिष्ट स्थान बना लिया है। 3. श्रावकविधिप्रकरण : इसमें धनपाल ने श्रावक के धर्मों का विवेचन किया है। 4. वीरस्तुति : इसमें धनपाल ने महावीर स्वामी की स्तुति की है। यह प्राकृत भाषा में रचित 30 पद्यों की स्तुति है। यह सम्पूर्ण स्तुति विरोधाभास अलंकार से युक्त है तथा प्राकृत भाषा में इस प्रकार की एकमात्र स्तुति है। वीरस्तुति के प्रारम्भ में ही धनपाल कहते हैं - मैं नख रहित जिन (विरोध परिहार हेतु - निर्मल नखों से युक्त) के चरण कमलों को प्रणाम करता हूँ। अविरुद्धवचन होते हुए भी विरुद्ध वचनों से (विरोध परिहार हेतु - अविरूद्धवचन वाले) भगवान महावीर की विरोधाभास अलङ्कार युक्त वचनों से स्तुति करता हूँ।" . 5. शोभनस्तुतिवृत्ति शोभन मुनि ने स्तुतिचतुर्विशतिका की रचना की थी जिसमें 24 तीर्थंकरों की स्तुति की गई है। धनपाल ने भ्रातृ प्रेमवश शोभन की इस स्तुति पर एक वृत्ति की रचना की।
6. ऋषभपंचशिका :
धनपाल ने प्राकृत भाषा में 50 पद्यों में इस स्तुति की रचना की है। इसमें धनपाल ने प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव की स्तुति की है। प्रारम्भिक पद्यों में ऋषभदेव के जीवन की घटनाओं का वर्णन किया गया है। प्रथम पद्य में त्रिलोक के स्वामी की
54. निम्मलनहे विअणहे जिणाण चलणुप्पले पणमिऊणं।
वीरमविरुद्धवयणं धुणामि स विरुद्धवयणमहं।।-ऋषभपंचाशिका, वीरस्तुति, पृ. 200 55. प्रेमी, नाथूराम; जैन साहित्य और इतिहास, पृ. 410