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तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य
तीनों भाषाओं में काव्य रचनाएँ की है। हीरालाल रसिक दास कापड़िया ने 'ऋषभपंचाशिका' में धनपाल की नौ रचनाओं का उल्लेख किया है" .
1. पाइयलच्छीनाममाला
2. तिलकमञ्जरी
3. श्रावकविधि प्रकरण
प्राकृत कोश
संस्कृत
प्राकृत
प्राकृत
संस्कृत
4. वीरस्तुति
5. शोभनस्तुति वृत्ति
6. ऋषभपंचाशिका
7. सत्यपुरीय-श्री- महावीर - उत्साह
8. वीरस्तुति
9. नाममाला
1. पाइयलच्छीनाममाला" :
यह प्राकृत भाषा का कोश है। इसकी रचना धनपाल ने अपनी बहन सुन्दरी के लिए की थी।" इस कोश में धनपाल ने देशी, तत्सम एवं तद्भव शब्दों के पर्यायवाची शब्द दिये है। इसमें 279 पद्य हैं।
प्राकृत
अपभ्रंश
53.
संस्कृत-प्राकृत
संस्कृत
29
गंगा प्रसाद यादव के अनुसार पाइयलच्छीनाममाला ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह दक्कन के राष्ट्रकूटों और परमारों के संबंधों पर प्रकाश डालती है। यह परमार और राष्ट्रकूट के अनेक राजाओं के समय को निश्चित करने में प्राचीन भारतीय इतिहास के शोधार्थी की सहायता करती है । "
50. कापड़िया, हीरालाल रसिकदास; ऋषभपंचाशिका वीरस्तुतिद्वयरूपकृत्तिक्लाप:, पृ. 16 धनपाल; पाइयलच्छीनाममाला, (सं.) बेचरदास जीवराज दोशी धारानयरीए परिट्ठिएण मग्गे ठिआए अणवज्जे ।
51.
52.
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277
कज्जे कणिट्ठबहिणीए 'सुन्दरी' नामधिज्जाए । । - पाइयलच्छीनाममाला, गाथा Pailacchi is a work of considerable importance from the historiacal point of view. It throws some very significant light on the relations between Paramaras and the Rastrakutas of Daccan. The sack of Manyakheta, the capital of Rastrakutas, which is mentioned in Paiyalacci helps the student of ancient Indian history in fixing the period of various kings of paramar and Rastrakutas dynasties. - Yadav, Ganga Prasad; Dhanpal and his time, P.17